GEPS-02 SOLVED QUESTION PAPER JUNE 2024 ( UOU STUDY POINT ) UTTARAKHAND OPEN UNIVERSITY UPDATES
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प्रश्न 01. राज्य के नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति का मूल्यांकन कीजिए। इनके पीछे क्या शक्त्ति है?
उत्तर :- राज्य के नीति निदेशक तत्वों (Directive Principles of State Policy) का मूल्यांकन इस प्रकार किया जा सकता है:
प्रकृति (Nature):
* सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना: इनका मुख्य उद्देश्य भारत में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है, जहाँ सामाजिक और आर्थिक समानता हो।
* नैतिक मार्गदर्शन: ये तत्व राज्य के लिए नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, ताकि नीतियाँ बनाते समय इनका ध्यान रखा जा सके।
* गैर-न्यायोचित (Non-justiciable): ये तत्व न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराए जा सकते, लेकिन ये देश के शासन में मूलभूत हैं।
* सकारात्मक दायित्व: ये राज्य पर कुछ सकारात्मक दायित्व डालते हैं, जैसे कि नागरिकों के कल्याण के लिए काम करना।
* आदर्शों का समूह: ये तत्व उन आदर्शों का समूह हैं जिन्हें राज्य को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
शक्ति (Enforcement):
* नैतिक शक्ति: यद्यपि ये तत्व कानूनी रूप से लागू नहीं किए जा सकते, लेकिन इनकी नैतिक शक्ति बहुत अधिक है। ये जनता की राय और राजनीतिक दलों पर दबाव डालते हैं कि वे इन तत्वों के अनुसार काम करें।
* जनमत की शक्ति: जनता इन तत्वों के आधार पर सरकार की नीतियों का मूल्यांकन करती है। यदि सरकार इन तत्वों की अनदेखी करती है, तो उसे जनता के विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
* संवैधानिक शक्ति: यद्यपि नीति निदेशक तत्व न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराए जा सकते, फिर भी उन्हें संविधान में शामिल किया गया है, जो उन्हें एक विशेष महत्व देता है।
* न्यायिक व्याख्या: समय-समय पर, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णयों में नीति निदेशक तत्वों की व्याख्या की है, जिससे उनकी शक्ति और महत्व में वृद्धि हुई है।
अतिरिक्त जानकारी:
* संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख किया गया है।
* ये तत्व आयरलैंड के संविधान से लिए गए हैं।
* इन तत्वों का उद्देश्य देश में राजनीतिक लोकतंत्र को स्थापित करना है।
* इनका लक्ष्य देश में सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र को स्थापित करना है।
संक्षेप में, राज्य के नीति निदेशक तत्व भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण अंग हैं, जो देश के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
02. संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के महत्व की व्याख्या करें।
उत्तर :- भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार देश के सभी नागरिकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये अधिकार न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करते हैं, बल्कि एक मजबूत और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मौलिक अधिकारों का महत्व:
* व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा:
* मौलिक अधिकार नागरिकों को सरकार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मनमाने हस्तक्षेप से बचाते हैं।
* ये अधिकार नागरिकों को अपनी पसंद के अनुसार जीवन जीने, अपनी बात कहने और अपने विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता देते हैं।
* समानता और न्याय की स्थापना:
* मौलिक अधिकार सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता और समान अवसर प्रदान करते हैं।
* ये अधिकार जाति, धर्म, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकते हैं।
* लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा:
* मौलिक अधिकार लोकतांत्रिक मूल्यों जैसे कि स्वतंत्रता, समानता और न्याय की रक्षा करते हैं।
* ये अधिकार नागरिकों को सरकार के कार्यों की निगरानी करने और उन्हें जवाबदेह ठहराने का अधिकार देते हैं।
* अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों की रक्षा:
* मौलिक अधिकार अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों को भेदभाव और उत्पीड़न से बचाते हैं।
* ये अधिकार उन्हें अपनी संस्कृति, भाषा और धर्म को संरक्षित करने का अधिकार देते हैं।
* कानून के शासन की स्थापना:
* मौलिक अधिकार कानून के शासन की स्थापना करते हैं, जहां सभी नागरिक कानून के समक्ष समान होते हैं।
* यह अधिकार देश में क़ानून व्यवस्था को मजबूत बनाने का कार्य करता है।
* व्यक्तित्व का विकास:
* मौलिक अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं, इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जायेगा।
संक्षेप में:
मौलिक अधिकार भारतीय संविधान की आधारशिला हैं। ये अधिकार नागरिकों को एक गरिमापूर्ण और स्वतंत्र जीवन जीने में मदद करते हैं और एक न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
03. संसद के कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :- भारतीय संसद भारत की सर्वोच्च विधायी संस्था है। यह राष्ट्रपति और दो सदनों, राज्यसभा (राज्यों की परिषद) और लोकसभा (जनता का सदन) से मिलकर बनी है। संसद के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:
1. विधायी कार्य (Legislative Functions):
* कानून बनाना: संसद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कानून बनाना है। यह संघ सूची और समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाती है।
* संविधान में संशोधन: संसद को संविधान में संशोधन करने का भी अधिकार है।
* पुराने कानूनों में बदलाव: संसद पुराने कानूनों को निरस्त कर सकती है या उनमें संशोधन कर सकती है।
2. कार्यकारी कार्य (Executive Functions):
* सरकार पर नियंत्रण: संसद विभिन्न उपायों जैसे कि प्रश्नकाल, शून्यकाल, अविश्वास प्रस्ताव आदि के माध्यम से सरकार पर नियंत्रण रखती है।
* मंत्रियों से सवाल पूछना: संसद के सदस्य मंत्रियों से उनके विभागों से संबंधित सवाल पूछ सकते हैं।
* सरकार की नीतियों पर चर्चा: संसद सरकार की नीतियों पर चर्चा करती है और उन्हें स्वीकृति या अस्वीकृति देती है।
3. वित्तीय कार्य (Financial Functions):
* बजट पारित करना: संसद सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट को पारित करती है।
* करों को मंजूरी: संसद नए करों को मंजूरी देती है और पुराने करों में बदलाव कर सकती है।
* सरकारी खर्च पर नियंत्रण: संसद सरकारी खर्च पर नियंत्रण रखती है।
4. प्रतिनिधित्व कार्य (Representative Functions):
* जनता की आवाज: संसद जनता की आवाज का प्रतिनिधित्व करती है।
* विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व: संसद में विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं।
5. चर्चा और बहस कार्य (Deliberative Functions):
* राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा: संसद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा करती है।
* विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार: संसद विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करती है और आम सहमति बनाने का प्रयास करती है।
6. संविधान संशोधन कार्य (Constituent Functions):
* संविधान में संशोधन: संसद संविधान में संशोधन कर सकती है।
* नए राज्यों का निर्माण: संसद नए राज्यों का निर्माण कर सकती है और मौजूदा राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है।
7. चुनावी कार्य (Electoral Functions):
* राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव: संसद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेती है।
* अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव: लोकसभा अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करती है।
8. न्यायिक कार्य (Judicial Functions):
* राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पर महाभियोग: संसद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पर महाभियोग चला सकती है।
* न्यायाधीशों को हटाना: संसद सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटा सकती है।
* विशेषाधिकारों का उल्लंघन: संसद अपने सदस्यों को विशेषाधिकारों के उल्लंघन के लिए दंडित कर सकती है।
संक्षेप में, भारतीय संसद एक बहुआयामी संस्था है जो देश के शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रश्न 4 - सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान का संरक्षक तथा मौलिक अधिकारों का रक्षक है" व्याख्या कीजिए।
उत्तर :- सर्वोच्च न्यायालय को भारतीय संविधान का संरक्षक और मौलिक अधिकारों का रक्षक माना जाता है। यह कथन बिल्कुल सत्य है।
संविधान के संरक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका:
* संविधान की व्याख्या:
* सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की अंतिम व्याख्या करने का अधिकार है। यह संविधान के प्रावधानों को स्पष्ट करता है और यह सुनिश्चित करता है कि उनका सही ढंग से पालन किया जाए।
* न्यायिक पुनरावलोकन:
* सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी कानून या सरकारी कार्रवाई को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार है यदि वह संविधान का उल्लंघन करता है। यह शक्ति संविधान की सर्वोच्चता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
* संविधान की रक्षा:
* सर्वोच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि सरकार के सभी अंग संविधान के अनुसार कार्य करें। यह संविधान को किसी भी प्रकार के उल्लंघन से बचाता है।
मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका:
* मौलिक अधिकारों का प्रवर्तन:
* सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए रिट जारी कर सकता है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है।
* मौलिक अधिकारों की रक्षा:
* सर्वोच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि सरकार या कोई अन्य व्यक्ति नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करे। यह मौलिक अधिकारों को किसी भी प्रकार के खतरे से बचाता है।
* न्यायिक सक्रियता:
* सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक सक्रियता के माध्यम से मौलिक अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसने कई ऐसे निर्णय दिए हैं जिन्होंने कमजोर वर्गों के अधिकारों को मजबूत किया है।
महत्वपूर्ण बातें:
* भारतीय संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं, जो उनके जीवन, स्वतंत्रता और समानता की रक्षा करते हैं।
* अनुच्छेद 32 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश निषेध अधिकार पृच्छा एवं उत्प्रेषण रिट जारी किए जा सकते है।
* सर्वोच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि इन अधिकारों का उल्लंघन न हो।
इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान के संरक्षक और मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
05. लोकतन्त्र की आधारभूत संस्थाओं के रूप में पंचायतों की कार्य-प्रणाली का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर :- पंचायती राज व्यवस्था, लोकतंत्र की आधारभूत संस्थाओं में से एक है। यह जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करने और स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण साधन है। पंचायतों की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन इस प्रकार किया जा सकता है:
सकारात्मक पहलू:
* जमीनी स्तर पर लोकतंत्र:
* पंचायतों ने लोगों को स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान किया है।
* इससे लोगों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी है और वे अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक हुए हैं।
* स्थानीय विकास:
* पंचायतों ने स्थानीय स्तर पर विकास कार्यों को गति दी है।
* उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और बुनियादी ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
* सामाजिक न्याय:
* पंचायतों ने कमजोर वर्गों और महिलाओं को सशक्त बनाने में मदद की है।
* उन्होंने सामाजिक भेदभाव को कम करने और सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने का प्रयास किया है।
नकारात्मक पहलू:
* सीमित वित्तीय संसाधन:
* पंचायतों के पास वित्तीय संसाधनों की कमी है, जिससे उनके विकास कार्यों में बाधा आती है।
* वे अक्सर राज्य सरकार और केंद्र सरकार पर निर्भर रहते हैं।
* भ्रष्टाचार:
* कुछ पंचायतों में भ्रष्टाचार की समस्या है, जिससे विकास कार्यों में बाधा आती है और लोगों का विश्वास कम होता है।
* राजनीतिक हस्तक्षेप:
* पंचायतों में राजनीतिक हस्तक्षेप भी एक बड़ी समस्या है।
* इससे पंचायतों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता प्रभावित होती है।
* जागरूकता की कमी:
* ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पंचायती राज व्यवस्था के प्रति जागरूकता की कमी है।
सुधार के उपाय:
* वित्तीय संसाधनों में वृद्धि:
* पंचायतों को अधिक वित्तीय संसाधन प्रदान किए जाने चाहिए ताकि वे अपने विकास कार्यों को प्रभावी ढंग से कर सकें।
* भ्रष्टाचार पर नियंत्रण:
* भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए और पंचायतों में पारदर्शिता बढ़ाई जानी चाहिए।
* राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना:
* पंचायतों को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त किया जाना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें।
* जागरूकता बढ़ाना:
* लोगों को पंचायती राज व्यवस्था के बारे में जागरूक करने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
* प्रशिक्षण:
* पंचायत के सदस्यों को उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष:
पंचायती राज व्यवस्था लोकतंत्र को मजबूत करने और स्थानीय विकास को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण साधन है। हालाँकि, इसकी कार्यप्रणाली में कुछ कमियाँ हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। सुधार के उपायों को लागू करके, पंचायतों को अधिक प्रभावी और कुशल बनाया जा सकता है।
SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS
01. भारत एक संघीय राज्य है इस कथन के बारे में संक्षेप में समझाइए।
उत्तर :- भारत एक संघीय राज्य है, इसका मतलब है कि यहां सरकार दो स्तरों पर काम करती है:
* केंद्र सरकार: जो पूरे देश के लिए कानून बनाती है।
* राज्य सरकारें: जो अपने-अपने राज्यों के लिए कानून बनाती हैं।
इन दोनों स्तरों की सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन संविधान में किया गया है। कुछ विषय केंद्र सरकार के पास होते हैं, कुछ राज्य सरकारों के पास, और कुछ विषयों पर दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं। भारत में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का यह विभाजन संघीय ढांचे का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
यहां कुछ मुख्य बातें हैं जो भारत को एक संघीय राज्य बनाती हैं:
* शक्तियों का विभाजन: संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है।
* लिखित संविधान: भारत का संविधान लिखित है और यह केंद्र और राज्यों दोनों सरकारों की शक्तियों को परिभाषित करता है।
* स्वतंत्र न्यायपालिका: सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या करता है और केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का समाधान करता है।
* द्विसदनीय विधायिका: भारतीय संसद में लोकसभा और राज्यसभा दो सदन हैं, जिसमें राज्य सभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है।
02. भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षणों को स्पष्ट करें।
उत्तर :- भारतीय संविधान में संघीय व्यवस्था के साथ-साथ एकात्मक लक्षण भी मौजूद हैं, जो केंद्र सरकार को मजबूत बनाते हैं। ये लक्षण इस प्रकार हैं:
* एकल संविधान:
* भारत में केंद्र और राज्यों दोनों के लिए एक ही संविधान है। राज्यों का अपना कोई अलग संविधान नहीं है।
* एकल नागरिकता:
* भारत के सभी नागरिकों को केवल एक ही नागरिकता प्राप्त है, जो भारतीय नागरिकता है। राज्यों की अपनी कोई अलग नागरिकता नहीं है।
* मजबूत केंद्र:
* भारतीय संविधान में केंद्र सरकार को राज्यों की तुलना में अधिक शक्तियां प्रदान की गई हैं।
* संघ सूची में राज्य सूची की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं।
* अवशिष्ट शक्तियां भी केंद्र सरकार के पास हैं।
* राज्यपाल की नियुक्ति:
* राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं।
* अखिल भारतीय सेवाएं:
* अखिल भारतीय सेवाएं (जैसे कि आईएएस और आईपीएस) केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित की जाती हैं, लेकिन वे राज्यों में भी काम करती हैं।
* आपातकालीन प्रावधान:
* आपातकालीन स्थिति में, केंद्र सरकार राज्यों की शक्तियों को अपने हाथ में ले सकती है।
* एकीकृत न्यायपालिका:
* भारत में एक एकीकृत न्यायपालिका है, जिसका सर्वोच्च न्यायालय पूरे देश के लिए अंतिम अपीलीय न्यायालय है।
* संविधान संशोधन की शक्ति:
* संविधान में संशोधन करने की शक्ति मुख्य रूप से संसद के पास है, जिसमें राज्यों की भूमिका सीमित है।
ये एकात्मक लक्षण भारतीय संविधान को एक मजबूत केंद्र सरकार वाला संघीय संविधान बनाते हैं।
03. शोषण के विरूद्ध अधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर :- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार का वर्णन किया गया है। यह अधिकार नागरिकों को किसी भी प्रकार के शोषण से बचाता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान हैं:
अनुच्छेद 23: मानव तस्करी और बलात श्रम का निषेध
* यह अनुच्छेद मानव तस्करी, बेगार (बिना पारिश्रमिक के काम करवाना) और इसी प्रकार के अन्य बलात श्रम के प्रकारों पर प्रतिबंध लगाता है।
* यह प्रावधान भारत के नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिए उपलब्ध है।
* इस अनुच्छेद का उद्देश्य मानव गरिमा की रक्षा करना और लोगों को जबरन श्रम से बचाना है।
अनुच्छेद 24: बाल श्रम का निषेध
* यह अनुच्छेद 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों, खानों या किसी अन्य खतरनाक रोजगार में काम करने से रोकता है।
* यह प्रावधान बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा की रक्षा के लिए बनाया गया है।
* यह अनुच्छेद बच्चों को शोषण से बचाने और उन्हें एक सुरक्षित भविष्य प्रदान करने का प्रयास करता है।
शोषण के विरुद्ध अधिकार का महत्व
* यह अधिकार कमजोर वर्गों, जैसे कि महिलाओं, बच्चों और मजदूरों को शोषण से बचाता है।
* यह मानव गरिमा और समानता को बढ़ावा देता है।
* यह एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज की स्थापना में मदद करता है।
यह अधिकार भारत में पुराने समय से चली आ रही जबरन मजदूरी, मानव तस्करी और बाल श्रम जैसी समस्याओं को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
04. 86वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गए शिक्षा के अधिकार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :- 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा भारतीय संविधान में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया।
मुख्य प्रावधान:
* अनुच्छेद 21ए:
* इस संशोधन के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 21ए जोड़ा गया, जो 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाता है।
* इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य कानून बनाकर यह निर्धारित करेगा कि बच्चों को किस प्रकार मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाएगी।
* अन्य परिवर्तन:
* इस संशोधन ने अनुच्छेद 45 में भी परिवर्तन किया, जो राज्य को प्रारंभिक बचपन की देखभाल और 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए शिक्षा प्रदान करने का निर्देश देता है।
* साथ ही, अनुच्छेद 51ए में भी परिवर्तन किया गया, जिसमें माता-पिता या अभिभावकों के कर्तव्य को शामिल किया गया कि वे अपने 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करें।
महत्व:
* यह संशोधन बच्चों के शिक्षा के अधिकार को कानूनी रूप से मजबूत करता है।
* यह सुनिश्चित करता है कि सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
* यह देश के भविष्य को बेहतर बनाने में मदद करता है, क्योंकि शिक्षित नागरिक एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करते हैं।
यह संशोधन भारत में शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्रश्न 05. हमारे संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर :- हमारे संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्य इस प्रकार हैं:
* संविधान का पालन करना:
* हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का सम्मान करे।
* स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों का पालन:
* स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना।
* देश की रक्षा:
* देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना।
* देश की सेवा:
* देश की रक्षा करना और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करना।
* भाईचारे को बढ़ावा देना:
* धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय विविधताओं से परे सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना और महिलाओं के सम्मान के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करना।
* संस्कृति का संरक्षण:
* हमारी मिश्रित संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देना और संरक्षित करना।
* पर्यावरण की रक्षा:
* वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के लिए दया करना।
* वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास:
* वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना।
* सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा:
* सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना।
* उत्कृष्टता के लिए प्रयास:
* राष्ट्र की निरंतर प्रगति के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना।
* शिक्षा का अधिकार:
* माता-पिता या अभिभावक के रूप में, अपने बच्चे को, या अपने बच्चे को 6 से 14 वर्ष की आयु के बीच शिक्षा के अवसर प्रदान करना।
मौलिक कर्तव्यों को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान में जोड़ा गया था। 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा 11वां मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया।
प्रश्न 06. राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर :- राष्ट्रपति का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से ना होकर अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति द्वारा होता है, जिसमे निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार एकल संक्रमणीय मत व गुप्त मतदान द्वारा उसका निर्वाचन द्वारा किया जाता है ¹।
राष्ट्रपति के निर्वाचन में निम्नलिखित लोग शामिल होते हैं:
- _संसद के दोनों सदनों (लोकसभा व राज्यसभा) के निर्वाचित सदस्य_
- _राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य_
- _केंद्र शासित प्रदेशों दिल्ली व पुडुचेरी विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य_
राष्ट्रपति के निर्वाचन में विभिन्न राज्यों का समान प्रतिनिधित्व हो इसके लिए राज्य विधानसभाओं और संसद के मतों की संख्या निम्न प्रकार से निर्धारित होती है। राष्ट्रपति का चयन अनुच्छेद 55 के तहत आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पध्दति से होता हैं। राष्ट्रपति के चुनाव में निर्वाचन मंडल भाग लेता हैं। निर्वाचन मंडल में राज्य और लोक संभा के निर्वाचित सदस्य और राज्य के विधानसभा के सदस्य भाग लेते हैं। वोट आवंटित करने के लिए एक फार्मूला बनाया जाता हैं जिसमे प्रत्येक राज्य की जनसँख्या के अनुसार विधायको की संख्या का अनुपात निकाला जाता हैं और विधायको की संख्या के समानुपात राष्ट्रिय सांसदों को वोट देने का अधिकार प्राप्त होता हैं ¹।
प्रश्न 07. उच्च न्यायालय के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर :- उच्च न्यायालय के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार का अर्थ है कि कुछ मामलों में, उच्च न्यायालय सीधे सुनवाई कर सकता है, बिना मामले को पहले निचले न्यायालयों में भेजे। यह क्षेत्राधिकार कुछ विशेष प्रकार के मामलों तक सीमित है।
उच्च न्यायालय के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित मामले आते हैं:
* मूल अधिकारों का प्रवर्तन:
* उच्च न्यायालयों को नागरिकों के मूल अधिकारों को लागू करने की शक्ति है। यदि किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह सीधे उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।
* विवाह, तलाक और वसीयत के मामले:
* कुछ उच्च न्यायालयों को विवाह, तलाक और वसीयत से संबंधित मामलों में प्रारंभिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
* समुद्री कानून के मामले:
* समुद्री कानून से संबंधित मामलों में भी उच्च न्यायालयों को प्रारंभिक क्षेत्राधिकार होता है।
* चुनावी मामले:
* संसद तथा विधानसभा के सदस्यों के चुनाव से सम्बंधित मामलों में उच्च न्यायालय प्रारंभिक क्षेत्राधिकार रखता है।
* कंपनी कानून के मामले:
* कंपनी कानून से सम्बंधित मामलों में कुछ उच्च न्यायालयों को प्रारंभिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
महत्वपूर्ण बातें:
* उच्च न्यायालय का प्रारंभिक क्षेत्राधिकार राज्य के अनुसार भिन्न हो सकता है।
* कुछ उच्च न्यायालयों को अन्य मामलों में भी प्रारंभिक क्षेत्राधिकार प्राप्त हो सकता है, जो उनके क्षेत्रीय कानूनों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।
संक्षेप में, उच्च न्यायालय का प्रारंभिक क्षेत्राधिकार कुछ विशेष प्रकार के मामलों में सीधे सुनवाई करने की शक्ति प्रदान करता है, जिससे नागरिकों को त्वरित न्याय मिल सके।
प्रश्न 08. 74वें संविधान संशोधन के द्वारा लागू किए गए मुख्य सुधार क्या है
उत्तर :- 74वें संविधान संशोधन, 1992 ने भारत में शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। इस संशोधन के द्वारा लागू किए गए मुख्य सुधार इस प्रकार हैं:
* नगरपालिकाओं का गठन:
* इस संशोधन ने शहरी क्षेत्रों में तीन प्रकार की नगरपालिकाओं के गठन का प्रावधान किया: नगर पंचायत, नगर परिषद और नगर निगम।
* नियमित चुनाव:
* इस संशोधन ने नगरपालिकाओं के नियमित और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए।
* आरक्षण:
* इसने अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया।
* शक्तियों और कार्यों का हस्तांतरण:
* इसने नगरपालिकाओं को 12वीं अनुसूची में सूचीबद्ध 18 विषयों पर शक्तियां और कार्य सौंपे, जिनमें शहरी नियोजन, जल आपूर्ति, स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य शामिल हैं।
* वित्तीय प्रावधान:
* इसने नगरपालिकाओं के लिए वित्तीय संसाधनों के प्रावधान की व्यवस्था की, जिसमें राज्य वित्त आयोगों का गठन शामिल है।
* जिला योजना समितियाँ:
* इस संशोधन के द्वारा नगर पालिकाओं के योजनाओं को समेकित करने के लिए जिला योजना समितियों का गठन किया गया।
* महानगर योजना समितियाँ:
* इस संशोधन के द्वारा महानगर क्षेत्रों के लिए विकास योजनाओं के प्रारूप तैयार करने हेतु महानगर योजना समितियों का गठन किया गया।
महत्व:
* इस संशोधन ने शहरी स्थानीय निकायों को अधिक स्वायत्तता और शक्ति प्रदान की।
* इसने शहरी क्षेत्रों में विकास कार्यों को गति देने में मदद की।
* इसने शहरी स्थानीय शासन में लोगों की भागीदारी को बढ़ावा दिया।
संक्षेप में, 74वें संविधान संशोधन ने शहरी स्थानीय शासन को मजबूत किया और शहरी विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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