आज हम आपको UOU STUDY POINT की तरफ से UTTRAKHAND OPEN UNIVERSITY के पेपर Code BAED-N-201 के DECEMBER 2024 के 3rd सेमेस्टर के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर लाए है जो आपकी परीक्षा में बहुत उपयोगी होंगे

BAED-N-201 SOLVED QUESTION PAPER DECEMBER 2024
Long Answer Type Questions
प्रश्न 01: आजीवन शिक्षा क्या है? आजीवन शिक्षा की विशेषताएँ, लाभ तथा महत्व का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर. परिभाषा: आजीवन शिक्षा (Lifelong Learning) का आशय उस प्रक्रिया से है, जो व्यक्ति के जीवन भर चलती रहती है। यह एक सतत शिक्षा प्रणाली है, जिसमें व्यक्ति औपचारिक, अनौपचारिक या स्वयं अध्ययन के माध्यम से निरंतर ज्ञान, कौशल और समझ विकसित करता है। यह शिक्षा सिर्फ औपचारिक विद्यालय या विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह जीवन के प्रत्येक चरण, हर स्थान और परिस्थिति में व्यक्ति के सीखने की क्षमता को बढ़ावा देती है।
आजीवन शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Lifelong Education):
1. सतत प्रक्रिया (Continuous Process):
यह शिक्षा जीवन की शुरुआत से अंत तक चलती रहती है। यह कभी समाप्त नहीं होती।
2. स्वयं प्रेरित (Self-motivated):
व्यक्ति स्वेच्छा से अपने ज्ञान और कौशल को बढ़ाने के लिए प्रयास करता है।
3. वैयक्तिक और व्यावसायिक विकास:
यह न केवल व्यक्ति के आत्मविकास में सहायक है, बल्कि उसके करियर में भी उन्नति लाती है।
4. लचीलापन (Flexibility):
आजीवन शिक्षा किसी निश्चित स्थान, समय या माध्यम से बाध्य नहीं है। इसे कहीं भी, कभी भी प्राप्त किया जा सकता है।
5. तकनीकी सहयोग से संपन्न:
आजकल इंटरनेट, ऑनलाइन पाठ्यक्रम, मोबाइल ऐप्स आदि के माध्यम से यह शिक्षा और अधिक सुलभ हो गई है।
6. अनौपचारिक और औपचारिक दोनों रूपों में:
यह कक्षा में प्राप्त शिक्षा के अतिरिक्त जीवन अनुभवों, चर्चाओं, वेबिनार, वीडियो आदि से भी प्राप्त होती है।
आजीवन शिक्षा के लाभ (Benefits of Lifelong Education):
1. निरंतर विकास:
यह व्यक्ति को मानसिक रूप से सक्रिय और ज्ञान के प्रति जागरूक बनाए रखती है।
2. रोज़गार के अवसरों में वृद्धि:
नई-नई तकनीकों, भाषा, सॉफ्टवेयर आदि को सीखकर व्यक्ति खुद को बदलते रोजगार के अनुरूप तैयार कर सकता है।
3. आत्मविश्वास में वृद्धि:
नए कौशलों को सीखने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है और वह समाज में अधिक प्रभावशाली भूमिका निभा पाता है।
4. समस्याओं को सुलझाने की क्षमता:
शिक्षा व्यक्ति की सोचने और निर्णय लेने की क्षमता को बेहतर बनाती है।
5. सामाजिक सहभागिता:
सीखने से व्यक्ति सामाजिक दृष्टिकोण से अधिक समझदार, सहिष्णु और सहयोगी बनता है।
6. मनोरंजन व रुचियों का विकास:
कला, संगीत, लेखन, फोटोग्राफी आदि क्षेत्रों में व्यक्ति अपनी रुचियों को बढ़ा सकता है।
आजीवन शिक्षा का महत्व (Importance of Lifelong Learning):
1. 21वीं सदी की आवश्यकता:
वर्तमान युग में तकनीक और ज्ञान तेजी से बदल रहे हैं। ऐसे में आजीवन शिक्षा आवश्यक हो गई है ताकि व्यक्ति समय के साथ कदम मिला सके।
2. सशक्त समाज की रचना:
जब व्यक्ति आजीवन सीखता है, तो वह समाज को बेहतर बनाने में भी योगदान देता है।
3. बुजुर्गों के लिए उपयोगी:
रिटायरमेंट के बाद भी व्यक्ति अपने जीवन को उपयोगी और सक्रिय बना सकता है।
4. स्वावलंबन को बढ़ावा:
यह व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है, जिससे वह जीवन की कठिनाइयों का सामना बेहतर ढंग से कर सकता है।
5. शिक्षा में समानता का माध्यम:
यह उन लोगों के लिए भी शिक्षा का अवसर देती है जो किसी कारणवश औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाए।
निष्कर्ष (Conclusion):
आजीवन शिक्षा न केवल व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास का आधार है, बल्कि समाज और राष्ट्र के समग्र विकास की कुंजी भी है। यह शिक्षा प्रणाली व्यक्ति को आत्मनिर्भर, जागरूक, सृजनशील और व्यावहारिक बनाती है।
इसलिए यह कहा जा सकता है कि "सीखना कभी नहीं रुकना चाहिए", और आजीवन शिक्षा इसी विचार को व्यवहार में लाने का सशक्त माध्यम है।
प्रश्न 02: आजीवन सीखने से आप क्या समझते हैं? आजीवन सीखने में राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर. आधुनिक युग में शिक्षा केवल औपचारिक डिग्रियों तक सीमित नहीं रह गई है। समाज, प्रौद्योगिकी और ज्ञान के निरंतर बदलते स्वरूप के कारण व्यक्ति को अपने जीवन के हर चरण में कुछ न कुछ नया सीखने की आवश्यकता होती है। इसी क्रम में "आजीवन सीखना" (Lifelong Learning) एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा के रूप में उभरा है।
आजीवन सीखने का अर्थ
आजीवन सीखना से आशय एक ऐसी शिक्षा प्रक्रिया से है जो व्यक्ति के पूरे जीवनकाल तक चलती है। यह केवल स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं होती, बल्कि जीवन के हर पहलू में ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोणों के विकास को शामिल करती है।
मुख्य बिंदु:
यह औपचारिक, अनौपचारिक और निरंतर शिक्षा को शामिल करता है।
इसका उद्देश्य आत्म-विकास, सामाजिक सहभागिता और पेशेवर दक्षता को बढ़ाना होता है।
यह व्यक्ति को बदलते समाज, तकनीक और कार्यस्थलों के अनुरूप ढालने में मदद करता है।
आजीवन सीखने की विशेषताएँ
1. सतत प्रक्रिया: यह जन्म से लेकर जीवन के अंत तक चलती रहती है।
2. व्यापकता: यह केवल एक विषय या क्षेत्र तक सीमित नहीं होती।
3. लचीलापन: व्यक्ति अपनी रुचि, आवश्यकता और समय के अनुसार सीख सकता है।
4. व्यावहारिक उपयोगिता: इसका उद्देश्य सीखे हुए ज्ञान को व्यवहार में लाना होता है।
5. स्व-प्रेरणा: इसमें स्वयं की इच्छा और प्रेरणा सबसे बड़ी भूमिका निभाती है।
भारत में आजीवन सीखने की आवश्यकता तेजी से बदलती तकनीक और कार्यस्थल की माँगों के कारण जनसंख्या का बड़ा हिस्सा युवा होने के कारण ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच ज्ञान की खाई को भरने के लिए बेरोजगारी, गरीबी और सामाजिक विषमता को दूर करने हेतु
राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका
भारत में कई राष्ट्रीय संगठन आजीवन सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं। इनका उद्देश्य शिक्षा को व्यापक, सुलभ और लचीला बनाना है।
1. इग्नू (IGNOU - Indira Gandhi National Open University)
यह भारत की सबसे बड़ी मुक्त विश्वविद्यालय है।
यहां विभिन्न उम्र और पृष्ठभूमि के लोग उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
यह दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से लचीले पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
व्यावसायिक, तकनीकी और सामाजिक शिक्षा के लिए विविध कार्यक्रम उपलब्ध हैं।
2. राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS - National Institute of Open Schooling)
यह संस्था स्कूली शिक्षा को आजीवन सीखने के दृष्टिकोण से लचीलापन प्रदान करती है।
यह किशोर, वयस्कों और ड्रॉपआउट छात्रों को पुनः शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देती है।
क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम उपलब्ध कराकर शिक्षा को अधिक सुलभ बनाती है।
3. राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC - National Skill Development Corporation)
यह संगठन युवाओं और वयस्कों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने में कार्यरत है।
इसके अंतर्गत PMKVY (प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना) जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं।
यह आजीवन सीखने को व्यावसायिक दक्षताओं से जोड़ता है।
4. मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय)
नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत आजीवन शिक्षा को बढ़ावा दिया गया है।
डिजिटल लर्निंग, ओपन लर्निंग प्लेटफॉर्म (SWAYAM, DIKSHA) को बढ़ावा दिया जा रहा है।
यह स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक में लचीलापन और विकल्प आधारित शिक्षा की अवधारणा को लागू कर रहा है।
5. SWAYAM (Study Webs of Active Learning for Young Aspiring Minds)
यह भारत सरकार का एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है।
यह मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम प्रदान करता है जो आजीवन शिक्षार्थियों के लिए बहुत उपयोगी हैं।
इसमें इंजीनियरिंग, मानविकी, सामाजिक विज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा इत्यादि विषयों के कोर्स उपलब्ध हैं।
6. DIKSHA (Digital Infrastructure for Knowledge Sharing)
शिक्षकों और छात्रों के लिए एक डिजिटल मंच।
यह स्कूली शिक्षा में निरंतर सुधार और स्व-अध्ययन को प्रोत्साहित करता है।
इसमें वीडियो, पीडीएफ, क्विज़ और अन्य संसाधनों की सहायता से शिक्षण प्रक्रिया को सरल बनाया गया है।
निष्कर्ष
आजीवन शिक्षा एक समावेशी, सतत और लचीली प्रक्रिया है जो आधुनिक समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में यह शिक्षा प्रणाली सामाजिक-आर्थिक विकास की कुंजी बन सकती है।
राष्ट्रीय संगठनों की सक्रिय भूमिका से आजीवन सीखने की दिशा में ठोस प्रगति हो रही है, जिससे न केवल व्यक्तिगत विकास संभव हो रहा है, बल्कि राष्ट्र की उत्पादकता और समावेशिता में भी वृद्धि हो रही है।
प्रश्न 3: व्यावसायिक विकास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। आजीवन सीखने एवं व्यावसायिक विकास हेतु चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर 3: व्यावसायिक विकास वह निरंतर प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने करियर में आगे बढ़ने और प्रभावी होने के लिए अपने ज्ञान, कौशल और क्षमताओं को बढ़ाता है। यह एक सतत यात्रा है, न कि एक बार का लक्ष्य। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत उन्नति के साथ-साथ संगठन और क्षेत्र के समग्र विकास में योगदान करना है।
आजीवन सीखने एवं व्यावसायिक विकास हेतु प्रमुख कार्यक्रम:
* ऑनलाइन शिक्षा मंच: Coursera, edX, Udemy, NPTEL जैसे प्लेटफॉर्म विभिन्न विषयों पर ऑनलाइन कोर्स और प्रमाणन प्रदान करते हैं, जिससे लोग अपनी सुविधा के अनुसार सीख सकते हैं।
* प्रमाणीकरण कार्यक्रम: ये विशिष्ट कौशल (जैसे Microsoft, Cisco, PMP) में दक्षता प्रमाणित करते हैं, जिससे रोजगार क्षमता बढ़ती है और विशेषज्ञता मिलती है।
* कौशल विकास केंद्र: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और ITI जैसे कार्यक्रम युवाओं को विभिन्न व्यवसायों में व्यावहारिक प्रशिक्षण देते हैं, जिससे उन्हें रोजगार मिलता है।
* कार्यशालाएं, सेमिनार और सम्मेलन: ये गहन ज्ञान, नवीनतम रुझानों और नेटवर्किंग के अवसर प्रदान करते हैं, जिससे पेशेवर अपने क्षेत्र के विशेषज्ञों से जुड़ते हैं।
* मेंटरशिप और कोचिंग: अनुभवी पेशेवर व्यक्तिगत मार्गदर्शन और समर्थन देते हैं, जिससे सीखने वाले अपने करियर लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं और नेतृत्व कौशल विकसित करते हैं।
* नेतृत्व विकास कार्यक्रम: MBA और कार्यकारी कार्यक्रम पेशेवरों को प्रबंधकीय और नेतृत्व कौशल में निपुण बनाते हैं, जिससे वे संगठनों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा पाते हैं।
* सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाएं: सरकारें कौशल विकास के लिए वजीफा, अनुदान और कर प्रोत्साहन जैसी पहल करती हैं, जिससे अधिक लोग सीखने के कार्यक्रमों में भाग ले सकें।
ये सभी कार्यक्रम व्यक्तियों को बदलते परिवेश में प्रासंगिक बने रहने और अपने पेशेवर जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त करने में मदद करते हैं।
प्रश्न 4: कौशल विकास से आप क्या समझते हैं? कठिन कौशल एवं कोमल कौशल में अंतर का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर : कौशल विकास का तात्पर्य उन क्षमताओं, योग्यता और दक्षताओं को सुदृढ़ एवं उन्नत करने की प्रक्रिया से है जो किसी व्यक्ति को उसके कार्यक्षेत्र में अधिक सक्षम, आत्मनिर्भर और व्यावसायिक रूप से कुशल बनाती हैं। यह न केवल रोजगार प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है, बल्कि जीवन में निरंतर प्रगति और आत्मविकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में कौशल विकास को विशेष महत्व प्राप्त है क्योंकि इसके माध्यम से व्यक्ति तकनीकी, सामाजिक, संचार, नेतृत्व आदि क्षेत्रों में दक्षता प्राप्त करता है।
कौशल विकास दो प्रमुख प्रकार के कौशलों पर केंद्रित होता है — कठिन कौशल (Hard Skills) और कोमल कौशल (Soft Skills)। ये दोनों किसी भी व्यक्ति के समग्र विकास के लिए आवश्यक होते हैं।
कठिन कौशल (Hard Skills):
कठिन कौशल वे तकनीकी या पेशेवर क्षमताएँ होती हैं जिन्हें विशेष प्रशिक्षण, शिक्षा या अनुभव के माध्यम से सीखा जाता है। ये मापने योग्य, स्पष्ट और नौकरी विशेष होते हैं। उदाहरणस्वरूप – कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, मशीन ऑपरेशन, डाटा एनालिसिस, लेखांकन, ड्राइविंग, टाइपिंग, भाषा का ज्ञान आदि।
कठिन कौशल को आमतौर पर प्रमाणपत्रों, डिग्रियों या किसी प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से सिद्ध किया जा सकता है। ये आमतौर पर किसी विशेष कार्य को संपन्न करने की तकनीकी योग्यता से संबंधित होते हैं।
कोमल कौशल (Soft Skills):
कोमल कौशल वे व्यक्तिगत गुण, व्यवहार और सामाजिक क्षमताएं होती हैं जो कार्यस्थल पर अच्छे संबंध बनाने, टीमवर्क में सहयोग करने और प्रभावशाली संचार के लिए जरूरी होती हैं। इन्हें सीखना कठिन होता है क्योंकि ये व्यवहार और सोच से जुड़ी होती हैं।
इनमें शामिल हैं – संप्रेषण क्षमता, नेतृत्व, समय प्रबंधन, समस्या समाधान, अनुकूलनशीलता, टीमवर्क, सहानुभूति और सकारात्मक सोच। कोमल कौशल किसी भी पेशेवर को सामाजिक और भावनात्मक रूप से अधिक प्रभावशाली और सफल बनाते हैं।
निष्कर्ष:
कठिन कौशल और कोमल कौशल दोनों ही आज के कार्यक्षेत्र में समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। जहाँ कठिन कौशल आपको नौकरी दिलाने में मदद करता है, वहीं कोमल कौशल आपको उस नौकरी में टिकने और आगे बढ़ने में सहायक होता है। एक सफल और सक्षम व्यक्ति बनने के लिए इन दोनों प्रकार के कौशलों का संतुलन आवश्यक है। कौशल विकास का उद्देश्य व्यक्ति में इन दोनों प्रकार की दक्षताओं का समुचित विकास करना है जिससे वह अपने व्यावसायिक और व्यक्तिगत जीवन में सफलता प्राप्त कर सके।
प्रश्न 5: आजीवन सीखने से सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक विकास में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर: परिचय (Introduction) - आजीवन सीखना (Lifelong Learning) एक ऐसी सतत प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के प्रत्येक चरण में नए ज्ञान, कौशल और अनुभव अर्जित करता रहता है। यह औपचारिक शिक्षा से परे जाकर व्यक्ति को हर परिस्थिति में सीखने की प्रेरणा देता है। यह न केवल व्यक्तिगत उन्नति का माध्यम है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
1. सामाजिक विकास में आजीवन सीखने का योगदान
शिक्षित समाज का निर्माण: जब व्यक्ति निरंतर सीखता है, तो वह अधिक जागरूक, संवेदनशील और ज़िम्मेदार बनता है, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव आता है।
समाज में समरसता और समानता: आजीवन शिक्षा जाति, लिंग, वर्ग और भाषा के भेदभाव को मिटाने में सहायक होती है।
सामाजिक समस्याओं का समाधान: निरंतर शिक्षित होते रहने से लोग सामाजिक कुरीतियों जैसे—बाल विवाह, दहेज, असमानता आदि के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं।
2. सांस्कृतिक विकास में आजीवन सीखने की भूमिका
सांस्कृतिक विविधता को समझना: विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, और परंपराओं को जानकर व्यक्ति एकता में अनेकता के भाव को आत्मसात करता है।
सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण: शिक्षा के माध्यम से युवा पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी रहती है।
कलात्मक अभिव्यक्ति: संगीत, नाटक, चित्रकला आदि को सीखने से सांस्कृतिक जीवन समृद्ध होता है।
3. आर्थिक विकास में आजीवन शिक्षा का प्रभाव
रोजगार और उद्यमिता: नए कौशल सीखने से व्यक्ति रोजगार योग्य बनता है या स्वयं का व्यवसाय आरंभ कर सकता है।
उत्पादकता में वृद्धि: एक प्रशिक्षित व्यक्ति अधिक दक्षता और गुणवत्ता के साथ कार्य करता है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।
डिजिटल अर्थव्यवस्था में भागीदारी: तकनीकी शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति डिजिटल युग में अपने लिए नए आर्थिक अवसर उत्पन्न कर सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion) :
आजीवन सीखना न केवल एक वैयक्तिक गुण है, बल्कि यह राष्ट्र निर्माण की आधारशिला भी है। इससे समाज अधिक संवेदनशील और जागरूक बनता है, सांस्कृतिक विरासत संरक्षित रहती है और अर्थव्यवस्था को सशक्त बल मिलता है। एक शिक्षित नागरिक ही बेहतर समाज, समृद्ध संस्कृति और शक्तिशाली अर्थव्यवस्था का निर्माण कर सकता है।
Short Answer Type Questions
प्रश्न 01: आजीवन सीखने के विभिन्न क्षेत्रों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : आजीवन सीखना एक सतत प्रक्रिया है, जो जीवन के प्रत्येक चरण में व्यक्ति को सीखने का अवसर प्रदान करता है। इसके प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं:
1. औपचारिक शिक्षा क्षेत्र:
विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदि के माध्यम से प्राप्त की जाने वाली संरचित शिक्षा।
2. अनौपचारिक शिक्षा क्षेत्र:
पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक अनुभवों से प्राप्त ज्ञान, जो संस्थागत नहीं होता।
3. गैर-औपचारिक शिक्षा क्षेत्र:
प्रशिक्षण, कार्यशालाओं, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के माध्यम से प्राप्त शिक्षा जो विशिष्ट उद्देश्य के लिए होती है।
4. व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा:
कौशल आधारित शिक्षा जो रोजगार और दक्षता बढ़ाने के लिए दी जाती है।
5. डिजिटल और ऑनलाइन शिक्षा:
ई-लर्निंग, मोबाइल ऐप्स, वेबिनार आदि के माध्यम से निरंतर सीखने का आधुनिक माध्यम।
6. समुदाय आधारित शिक्षा:
समाज सेवा, स्वयंसेवी संगठनों या स्थानीय संस्थाओं के जरिए होने वाला व्यावहारिक और सामाजिक ज्ञान।
निष्कर्ष:
इन सभी क्षेत्रों के माध्यम से व्यक्ति निरंतर सीखता है और अपने व्यक्तिगत, सामाजिक व पेशेवर जीवन में प्रगति करता है।
प्रश्न 02: सतत विकास क्या है? सतत विकास के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : सतत विकास (Sustainable Development):
सतत विकास ऐसा विकास है जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करता है, बिना भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए। यह आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखता है।
सतत विकास के प्रमुख प्रकार:
1. आर्थिक सतत विकास:
संसाधनों का इस प्रकार उपयोग करना जिससे दीर्घकालीन आर्थिक प्रगति बनी रहे, जैसे हरित प्रौद्योगिकी, रोजगार सृजन आदि।
2. सामाजिक सतत विकास:
समानता, शिक्षा, स्वास्थ्य, मानव अधिकार और समाज की भलाई को सुनिश्चित करना।
3. पर्यावरणीय सतत विकास:
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना, जैसे—जल, वायु, भूमि और जैव विविधता की रक्षा।
4. संस्थागत सतत विकास:
नीति, शासन और संस्थागत ढांचे का ऐसा निर्माण जो विकास को दीर्घकाल तक बनाए रख सके।
निष्कर्ष:
सतत विकास का उद्देश्य वर्तमान और भविष्य दोनों की भलाई सुनिश्चित करना है, ताकि प्राकृतिक और सामाजिक संसाधनों की निरंतरता बनी रहे।
प्रश्न 03: विस्तार शिक्षा के प्रमुख सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: विस्तार शिक्षा जीवनोपयोगी, व्यावहारिक एवं सामाजिक जागरूकता आधारित शिक्षा प्रणाली है, जो निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित होती है:
1. लोगों के हित में शिक्षा – शिक्षा का उद्देश्य लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना होता है।
2. सीखने की स्वतन्त्रता – व्यक्ति अपनी इच्छा से इसमें भाग लेता है।
3. अनुभव आधारित शिक्षा – यह अनुभव और व्यवहार से जुड़ी होती है, जिसमें "करके सीखना" प्रमुख होता है।
4. समुदाय की भागीदारी – स्थानीय लोगों की सक्रिय सहभागिता आवश्यक होती है।
5. समस्या समाधान पर केंद्रित – यह लोगों की समस्याओं के समाधान हेतु जानकारी देती है।
6. धीमी लेकिन स्थायी प्रक्रिया – इसमें परिवर्तन धीरे-धीरे आता है, लेकिन उसका प्रभाव गहरा होता है।
7. संवाद और सहयोग – विस्तार शिक्षा में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के बीच संवाद आवश्यक होता है।
ये सिद्धांत विस्तार शिक्षा को प्रभावशाली, उपयोगी और समाजोपयोगी बनाते हैं।
प्रश्न 04: आजीवन सीखने के महत्व एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर: आजीवन सीखना व्यक्ति के समग्र विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित न होकर, अनुभव, तकनीकी कौशल, सामाजिक व्यवहार और जीवन के हर क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देता है।
महत्व:
1. निरंतर विकास: यह व्यक्ति को समय के साथ बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ढालने में मदद करता है।
2. रोजगार के अवसर: नई जानकारी और कौशल से व्यक्ति की नौकरी की संभावनाएं बढ़ती हैं।
3. आत्मविश्वास में वृद्धि: नया सीखने से आत्मविश्वास बढ़ता है और निर्णय लेने की क्षमता मजबूत होती है।
4. समाज में योगदान: जागरूक नागरिक के रूप में समाज में सकारात्मक भूमिका निभाने में सहायक होता है।
उपयोगिता:
डिजिटल युग में तकनीकी ज्ञान अर्जित करने में सहायक।
उद्यमिता, नेतृत्व और सृजनात्मकता को बढ़ावा देता है।
वृद्धावस्था में मानसिक सक्रियता बनाए रखता है।
निष्कर्ष:
आजीवन सीखना न केवल व्यक्तिगत सफलता का आधार है, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय प्रगति का भी प्रमुख साधन है।
प्रश्न 05. स्वतंत्र भारत में आजीवन शिक्षा के लिए सरकार द्वारा कौन-कौन से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ?
उत्तर: स्वतंत्र भारत में आजीवन शिक्षा (Lifelong Learning) को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर वंचित और वयस्क आबादी को शिक्षा के अवसर प्रदान करना है। कुछ प्रमुख कार्यक्रम और पहलें इस प्रकार हैं:
1. उल्लास - नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (ULLAS - Nav Bharat Saksharta Karyakram):
यह केंद्र प्रायोजित योजना वित्त वर्ष 2022-23 से 2026-27 तक कार्यान्वित की जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी निरक्षर व्यक्तियों को बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता प्रदान करना है। इस योजना में महत्वपूर्ण जीवन कौशल, बुनियादी शिक्षा, व्यावसायिक कौशल विकास और सतत शिक्षा जैसे घटक शामिल हैं। यह 'प्रौढ़ शिक्षा' नाम को 'सभी के लिए शिक्षा' में बदलकर आजीवन सीखने पर जोर देती है।
2. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आजीवन सीखने पर विशेष जोर देती है। यह विभिन्न स्तरों पर लचीले पाठ्यक्रम, बहु-विषयक शिक्षा, कौशल विकास और प्रौद्योगिकी-आधारित सीखने को बढ़ावा देती है ताकि व्यक्ति अपने जीवनकाल में लगातार सीख सकें और खुद को अपडेट कर सकें।
3. व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education):
सरकार द्वारा व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि युवाओं को रोजगारपरक कौशल प्राप्त हो सकें। माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तरों पर व्यावसायिक विषय शामिल किए गए हैं और विभिन्न कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
4. सतत शिक्षा कार्यक्रम (Continuing Education Programmes):
ये कार्यक्रम उन लोगों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं जिन्होंने औपचारिक शिक्षा पूरी कर ली है लेकिन अपने ज्ञान और कौशल को अद्यतन करना चाहते हैं। इनका उद्देश्य शिक्षार्थियों को निर्देशित अधिगम से स्व-अधिगम की ओर ले जाना और उन्हें व्यक्तिगत, व्यावसायिक और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं में सुधार के लिए सशक्त बनाना है। लोक शिक्षा केंद्र (Jan Shikshan Sansthan) भी इसी दिशा में कार्य करते हैं।
5. डिजिटल शिक्षा पहल (Digital Education Initiatives):
डिजिटल इंडिया अभियान के तहत कई डिजिटल शिक्षा पहलें शुरू की गई हैं, जो ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म और संसाधनों तक पहुंच प्रदान करती हैं। ये पहलें आजीवन सीखने को सुविधाजनक बनाती हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो दूरस्थ क्षेत्रों में हैं या जिनके पास पारंपरिक शिक्षा संस्थानों तक पहुंच नहीं है। डीटीएच चैनलों पर वयस्क शिक्षा पाठों का प्रसारण भी इसका एक उदाहरण है।
6. सर्व शिक्षा अभियान और समग्र शिक्षा अभियान (Sarva Shiksha Abhiyan and Samagra Shiksha Abhiyan):
हालांकि ये मुख्य रूप से स्कूली शिक्षा पर केंद्रित हैं, इनका उद्देश्य शिक्षा के सार्वभौमिकरण के माध्यम से एक मजबूत शैक्षिक आधार बनाना है, जो आजीवन सीखने के लिए आवश्यक है। समग्र शिक्षा अभियान में प्री-स्कूल से लेकर कक्षा 12 तक की शिक्षा को शामिल किया गया है।
7. कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV):
यह योजना विशेष रूप से वंचित वर्गों की लड़कियों के लिए आवासीय स्कूली शिक्षा प्रदान करती है, जिससे वे अपनी शिक्षा जारी रख सकें और आजीवन सीखने के लिए सक्षम बन सकें।
इन कार्यक्रमों का समग्र लक्ष्य एक ऐसे 'अध्ययनरत समाज' का निर्माण करना है जहां सभी व्यक्तियों को अपनी क्षमताओं और रुचियों के अनुसार पूरे जीवन सीखने और विकसित होने के अवसर मिलें।
प्रश्न 06: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में आजीवन शिक्षा हेतु क्या सुझाव दिए गए हैं?
उत्तर: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 (NEP 2020) ने 21वीं सदी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए आजीवन शिक्षा (Lifelong Learning) को एक प्रमुख उद्देश्य के रूप में मान्यता दी है। यह नीति शिक्षा को केवल डिग्री प्राप्ति तक सीमित नहीं रखती, बल्कि जीवनभर चलने वाली एक निरंतर प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत करती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में आजीवन शिक्षा हेतु प्रमुख सुझाव:
1. लचीलापन (Flexibility in Learning)
शिक्षार्थी अपनी सुविधानुसार किसी भी उम्र में पढ़ाई शुरू या पुनः प्रारंभ कर सकते हैं।
मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम के माध्यम से किसी भी स्तर पर शिक्षा छोड़ी और फिर से जोड़ी जा सकती है।
2. अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (ABC)
यह एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है जहाँ विद्यार्थियों के सभी शैक्षिक क्रेडिट्स दर्ज होंगे।
इससे शिक्षा को किसी भी संस्थान से आगे बढ़ाना आसान होगा और जीवनभर सीखने की प्रक्रिया में सहूलियत होगी।
3. ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा का विस्तार
SWAYAM, DIKSHA, e-PG Pathshala, NPTEL जैसे पोर्टलों को और प्रभावी बनाया जाएगा।
इससे रोजगार में लगे व्यक्ति, गृहणियां, बुज़ुर्ग भी शिक्षा से जुड़ सकेंगे।
4. व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education) को मुख्यधारा में लाना
स्कूली स्तर से ही व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की शुरुआत की जाएगी।
इससे लोग अपने कौशल में निरंतर सुधार कर सकेंगे और रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होंगे।
5. शिक्षकों और कर्मियों का सतत व्यावसायिक विकास (CPD)
सभी शिक्षकों के लिए निरंतर प्रशिक्षण कार्यक्रम अनिवार्य किए गए हैं।
इससे वे समयानुकूल तकनीक और शैक्षिक नवाचारों से अपडेट रहेंगे।
6. ओपन और डिस्टेंस लर्निंग (ODL) को बढ़ावा
IGNOU और NIOS जैसे संस्थानों के माध्यम से ओपन लर्निंग को विस्तार दिया जाएगा।
इसका उद्देश्य ग्रामीण, दूरदराज़ और कामकाजी लोगों को शिक्षा के साथ जोड़ना है।
7. स्थानीय भाषा और बहुभाषिकता को बढ़ावा
आजीवन सीखने के लिए मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे, जिससे सभी वर्गों को सीखने में आसानी होगी।
8. डिजिटल साक्षरता और कौशल विकास
डिजिटल तकनीक के माध्यम से शिक्षा को सुलभ बनाना और लोगों को ई-लर्निंग, कंप्यूटर साक्षरता, और तकनीकी प्रशिक्षण देना।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, आजीवन शिक्षा को एक समावेशी, लचीली और सुलभ प्रक्रिया बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया है कि हर नागरिक, चाहे किसी भी उम्र, पृष्ठभूमि या क्षेत्र से हो, वह किसी भी समय अपने ज्ञान और कौशल को बढ़ा सके।
प्रश्न 07: आजीवन सीखने का सामाजिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: आजीवन सीखना (Lifelong Learning) एक सतत प्रक्रिया है जो व्यक्ति को संपूर्ण जीवनकाल में ज्ञान, कौशल और समझ के विभिन्न स्तरों पर समृद्ध बनाती है। इसका प्रभाव केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि समाज पर भी गहरा प्रभाव डालता है।
आजीवन सीखने का सामाजिक विकास पर प्रभाव:
1. साक्षरता और जागरूकता में वृद्धि
आजीवन शिक्षा लोगों को निरंतर सीखने और जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे समाज में साक्षरता दर और सामाजिक जागरूकता बढ़ती है।
2. समानता और समावेशन को बढ़ावा
जब सभी वर्गों के लोगों को सीखने के अवसर मिलते हैं, तो सामाजिक असमानताएं घटती हैं और समावेशी समाज का निर्माण होता है। यह दलित, पिछड़े और वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने में सहायक होता है।
3. सकारात्मक सोच और सहिष्णुता का विकास
निरंतर शिक्षा से व्यक्ति के सोचने का नजरिया व्यापक होता है, जिससे सामाजिक सौहार्द, भाईचारा और सहिष्णुता बढ़ती है।
4. सामाजिक सहभागिता में वृद्धि
आजीवन सीखने से व्यक्ति अधिक जिम्मेदार नागरिक बनता है और सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी करता है। यह समाज में सहयोग, सहभागिता और नागरिक जिम्मेदारी को बढ़ाता है।
5. रूढ़ियों और अंधविश्वासों में कमी
शिक्षा समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार करती है जिससे रूढ़िवादी सोच, अंधविश्वास और भेदभाव जैसे तत्वों में कमी आती है।
6. सांस्कृतिक संरक्षण एवं संवर्धन
आजीवन शिक्षा से व्यक्ति अपनी संस्कृति, परंपराओं और विरासत के प्रति जागरूक होता है, जिससे सामाजिक पहचान और संस्कृति का संरक्षण होता है।
7. अपराध दर में कमी
शिक्षित और जागरूक समाज में अपराध की प्रवृत्तियाँ कम होती हैं क्योंकि लोगों में नैतिक मूल्यों, कानून का सम्मान और आत्मनिर्भरता की भावना विकसित होती है।
निष्कर्ष:
आजीवन सीखना न केवल व्यक्तिगत विकास का आधार है, बल्कि यह सामाजिक परिवर्तन का भी सशक्त माध्यम है। यह एक समृद्ध, समावेशी, न्यायसंगत और प्रगतिशील समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 08: आजीवन सीखने के उभरते रुझानों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
उत्तर: आजीवन सीखना (Lifelong Learning) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन भर ज्ञान, कौशल और दक्षताओं को अर्जित करता रहता है। यह केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित नहीं होता, बल्कि अनौपचारिक और गैर-औपचारिक माध्यमों से भी होता है। वर्तमान समय में वैश्वीकरण, तकनीकी विकास और सामाजिक परिवर्तन के कारण आजीवन सीखने के क्षेत्र में कई नए और महत्वपूर्ण रुझान उभर कर सामने आए हैं।
नीचे आजीवन सीखने के प्रमुख उभरते रुझानों की विस्तृत व्याख्या की गई है:
1. डिजिटल और ऑनलाइन लर्निंग का विकास
वर्तमान समय में इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म ने सीखने की प्रक्रिया को व्यापक बनाया है। आज व्यक्ति मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप आदि के माध्यम से किसी भी समय और कहीं से भी शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
उदाहरण:
ऑनलाइन कोर्सेज (MOOCs – Coursera, SWAYAM, Udemy)
ई-लर्निंग ऐप्स (Byju's, Unacademy, Khan Academy)
वेबिनार और वर्चुअल क्लासेस
2. व्यक्तिकृत (Personalized) और स्व-गति से सीखना (Self-paced Learning)
अब सीखना व्यक्ति-केंद्रित होता जा रहा है, जिसमें हर व्यक्ति अपनी गति, रुचि और आवश्यकता के अनुसार सीख सकता है।
विशेषताएँ:
लचीला पाठ्यक्रम
व्यक्तिगत प्रगति का ट्रैक
अनुकूलन योग्य सीखने का वातावरण
3. कौशल-आधारित शिक्षा और माइक्रो-लर्निंग
आज के प्रतिस्पर्धी युग में केवल डिग्री नहीं, बल्कि कौशल महत्वपूर्ण हो गए हैं। छोटे-छोटे मॉड्यूल्स में शिक्षा प्रदान करना एक नया चलन बन गया है।
उदाहरण:
डिजिटल मार्केटिंग, डेटा एनालिटिक्स, कोडिंग जैसे कोर्स
YouTube जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर छोटे वीडियो द्वारा सीखना
4. हाइब्रिड (Hybrid) और ब्लेंडेड लर्निंग मॉडल
इस रुझान में पारंपरिक कक्षा शिक्षा और ऑनलाइन शिक्षा का मिश्रण होता है, जिससे शिक्षा अधिक प्रभावी बनती है।
लाभ:
दोनों विधाओं की श्रेष्ठताओं का उपयोग
अधिक इंटरएक्टिव और व्यावहारिक शिक्षण
5. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग का उपयोग
शिक्षा में AI के आने से आजीवन शिक्षा को नया आयाम मिला है। यह छात्रों की आदतों और क्षमताओं के अनुसार कंटेंट सजेस्ट करता है।
उदाहरण:
ChatGPT जैसी AI टूल्स
एडाप्टिव लर्निंग प्लेटफॉर्म्स
6. सीखने के लिए सोशल मीडिया और कम्युनिटी प्लेटफॉर्म्स का उपयोग
Facebook Groups, Telegram Channels, Reddit, Quora जैसे प्लेटफ़ॉर्म अब ज्ञान साझा करने के सशक्त साधन बन चुके हैं।
लाभ:
सहकर्मी आधारित सीखना
सामुदायिक सहयोग और नेटवर्किंग
7. नौकरी आधारित निरंतर कौशल अद्यतन (Upskilling & Reskilling)
कंपनियाँ भी अब अपने कर्मचारियों को नए कौशल सिखाने के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रही हैं।
उदाहरण:
TCS iON, Infosys Lex जैसे प्लेटफॉर्म
Skill India, PMKVY जैसी सरकारी पहलें
8. स्व-प्रेरणा और आत्मनिर्देशित शिक्षा (Self-directed Learning)
व्यक्ति अब अपनी जिज्ञासा के अनुसार नए विषयों को स्वयं खोजकर सीखने लगा है।
विशेषताएँ:
पुस्तकें, पॉडकास्ट, ऑडियोबुक्स का उपयोग
सीखने के प्रति स्व-सक्रिय दृष्टिकोण
9. सतत व्यावसायिक विकास (CPD – Continuing Professional Development)
पेशेवर क्षेत्रों में नये मानकों को पूरा करने हेतु सतत रूप से सीखना आवश्यक हो गया है।
उदाहरण:
डॉक्टरों, शिक्षकों, इंजीनियरों के लिए नियमित वर्कशॉप और कोर्स
10. ग्लोबल लर्निंग का अवसर
अब सीमाओं का कोई बंधन नहीं रहा, छात्र विश्व के किसी भी कोने से विशेषज्ञों से शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
उदाहरण:
विदेशी विश्वविद्यालयों के कोर्सेस (Harvard, MIT, Oxford आदि)
इंटरनेशनल वर्चुअल इंटर्नशिप
निष्कर्ष:
आजीवन सीखना अब केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बन चुका है। बदलती दुनिया, तकनीकी उन्नति और रोजगार की नई माँगों के अनुरूप स्वयं को अद्यतन बनाए रखने के लिए इन उभरते रुझानों को अपनाना अनिवार्य है। डिजिटल प्लेटफॉर्म, कौशल विकास कार्यक्रम और स्व-प्रेरित शिक्षण पद्धतियाँ आजीवन शिक्षा को सुलभ, सशक्त और प्रभावी बना रही हैं।
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