Hindi Journalism BAHL N-221 UOU | Important Questions & Solved Paper 2025
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय (Uttarakhand Open University) के बी.ए. पाठ्यक्रम के अंतर्गत BAHL N-221 विषय “हिंदी पत्रकारिता” छात्रों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में हम 2025 की परीक्षा के लिए सबसे संभावित महत्वपूर्ण प्रश्नों, के उत्तर साझा कर रहे हैं।
Hindi Journalism BAHL N-221 UOU | Important Questions & Solved Paper 2025
प्रश्न 01 :- हिंदी पत्रकारिता के इतिहास के आधार पर उसके योगदान को रेखांकित कीजिए।
उत्तर: हिंदी पत्रकारिता का इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक सुधार, जन-जागरण और राष्ट्र निर्माण से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसका आरंभ 19वीं शताब्दी में हुआ और समय के साथ इसने समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हिंदी पत्रकारिता का संक्षिप्त इतिहास:
1. प्रारंभिक चरण (1826–1900):
"उदंत मार्तंड" (1826) को हिंदी का पहला समाचार पत्र माना जाता है, जिसे पं. जुगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से निकाला।
इस समय पत्रकारिता का उद्देश्य था – शिक्षा, जागरूकता और सामाजिक सुधार।
जातिवाद, अंधविश्वास, सती प्रथा जैसे मुद्दों पर खुलकर लेख लिखे गए।
2. राष्ट्रवादी चरण (1900–1947):
यह समय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा हुआ था।
बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकारों ने पत्रों के माध्यम से लोगों में देशभक्ति की भावना भरी।
‘प्रभा’, ‘भारत मित्र’, ‘सरस्वती’, ‘कर्मयोगी’, ‘प्रताप’ जैसे पत्र पत्रिकाओं ने लोगों को आजादी के लिए संगठित किया।
3. स्वतंत्रता के बाद (1947–वर्तमान):
हिंदी पत्रकारिता ने लोकतंत्र को सशक्त करने में भूमिका निभाई ग्रामीण पत्रकारिता, विज्ञान पत्रकारिता, महिला विषयों पर आधारित लेखन में विकास हुआ। अब डिजिटल युग में हिंदी पत्रकारिता ऑनलाइन प्लेटफार्म पर भी प्रभावशाली है।
हिंदी पत्रकारिता का योगदान:
1. राष्ट्रवाद का विकास:
अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जनमत तैयार किया।
लोगों में स्वतंत्रता की चेतना जगाई।
2. सामाजिक सुधार:
बाल विवाह, छुआछूत, स्त्री शिक्षा, नारी सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर लेखन कर समाज को दिशा दी।
3. शैक्षिक जागरूकता:
शिक्षा को बढ़ावा देने वाले विचार प्रकाशित किए।
जनता में पढ़ने और समझने की रुचि बढ़ाई।
4. लोकतंत्र का सशक्तिकरण:
जन-समस्याओं को सामने लाकर सरकार को उत्तरदायी बनाया।
चुनाव, नीति, प्रशासन की खबरें आम लोगों तक पहुंचाईं।
5. भाषा और संस्कृति का संरक्षण:
हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाया और भारतीय संस्कृति को संचारित करने का माध्यम बनी।
6. जनता की आवाज:
हिंदी पत्रकारिता ने आमजन के विचारों को मंच दिया, जिससे जनमत निर्माण संभव हुआ।
निष्कर्ष:
हिंदी पत्रकारिता केवल खबरों का माध्यम नहीं रही, बल्कि यह राष्ट्र निर्माण, सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक चेतना का सशक्त उपकरण बनी। इसके ऐतिहासिक योगदान को नकारा नहीं जा सकता। आज भी यह समाज को सजग, शिक्षित और संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
प्रश्न 02 :- जनसंपर्क : अवधारणा एवं स्वरूप बताइए
उत्तर:- आज के वैश्वीकृत एवं सूचना प्रधान युग में "जनसंपर्क" एक अत्यंत प्रभावशाली संचार उपकरण के रूप में उभरा है। किसी भी संस्था, सरकार, संगठन या व्यक्ति की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने लक्षित जनसमूह से किस प्रकार संवाद स्थापित करता है। यही कार्य जनसंपर्क के माध्यम से संभव होता है। जनसंपर्क केवल प्रचार का माध्यम नहीं है, बल्कि यह आपसी समझ, विश्वास और सहयोग का सेतु भी है।
जनसंपर्क की अवधारणा:
'जनसंपर्क' दो शब्दों से मिलकर बना है—"जन" अर्थात् लोग और "संपर्क" अर्थात् जुड़ाव या संवाद। अर्थात्, जनसंपर्क का अर्थ है – जनता से जुड़ाव स्थापित करना। यह एक ऐसी नियोजित प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी संगठन या व्यक्ति की छवि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है और जनमानस के साथ सामंजस्य स्थापित किया जाता है।
महत्वपूर्ण परिभाषाएँ:
1. एस. एम. कटलिप के अनुसार –
"जनसंपर्क एक प्रबंधन प्रक्रिया है, जिसके द्वारा संगठन और जनता के बीच पारस्परिक समझ, स्वीकृति और सहयोग की स्थापना की जाती है।"
2. इव. ली के अनुसार –
"जनसंपर्क सत्य को बताने, सूचना देने और जनता को समझाने की कला है।"
जनसंपर्क के उद्देश्य:
संस्था की छवि को बेहतर बनाना
जनमत को सकारात्मक दिशा में प्रभावित करना
समाज और संस्था के बीच विश्वास की भावना स्थापित करना
विवादों या अफवाहों को स्पष्ट करना
मीडिया और जन समुदाय के बीच संवाद स्थापित करना
जनसंपर्क का स्वरूप:
1. नियोजित प्रक्रिया:
जनसंपर्क पूर्व नियोजित, संगठित और दीर्घकालिक प्रक्रिया है। यह कोई आकस्मिक या एक बार की क्रिया नहीं है।
2. दोतरफा संचार:
यह एक संवादात्मक प्रक्रिया है, जिसमें संस्था न केवल सूचना देती है, बल्कि लोगों की प्रतिक्रियाओं को भी सुनती और समझती है।
3. जनहित से जुड़ी प्रक्रिया:
इसका उद्देश्य केवल संस्थागत लाभ नहीं होता, बल्कि यह समाज और जनता के हितों को भी ध्यान में रखता है।
4. छवि निर्माण और संरक्षण:
जनसंपर्क संस्था या व्यक्ति की सकारात्मक सार्वजनिक छवि को बनाता, विकसित करता और संजोता है।
5. मीडिया से गहरा संबंध:
जनसंपर्क मीडिया के सहयोग से सूचना का प्रचार-प्रसार करता है, जैसे – प्रेस विज्ञप्तियाँ, समाचार सम्मेलन, सोशल मीडिया आदि।
6. सत्य और पारदर्शिता पर आधारित:
प्रभावी जनसंपर्क सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर आधारित होता है। असत्य या भ्रामक प्रचार से जनता का विश्वास टूटता है।
आज के परिप्रेक्ष्य में जनसंपर्क का महत्व:
आज की प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में केवल उत्पाद या सेवाएं ही पर्याप्त नहीं हैं, जब तक कि उनकी एक सकारात्मक छवि न बने। यही काम जनसंपर्क करता है। चाहे वह राजनेता हों, उद्योगपति हों, सामाजिक संगठन हों या सरकारी संस्थाएँ – सभी के लिए जनसंपर्क अनिवार्य हो गया है। डिजिटल युग में तो जनसंपर्क की भूमिका और भी बढ़ गई है। सोशल मीडिया, ब्लॉग, वेबसाइट्स और ऑनलाइन न्यूज़ प्लेटफॉर्म इसके आधुनिक उपकरण बन चुके हैं।
उदाहरण:
चुनावों के दौरान राजनेताओं द्वारा जनता से संवाद करना
किसी कंपनी का अपने ग्राहकों के साथ ईमानदारी से जुड़ाव बनाए रखना
किसी विवाद के समय संस्था द्वारा मीडिया को स्थिति स्पष्ट करना
निष्कर्ष:
जनसंपर्क आज के युग में केवल एक संचार प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक रणनीतिक उपकरण है, जो संस्था और समाज के बीच पुल का कार्य करता है। यह विश्वास, संवाद और सहयोग का माध्यम बनकर सामाजिक और व्यावसायिक विकास को गति प्रदान करता है। जब जनसंपर्क ईमानदारी, पारदर्शिता और लोकहित के सिद्धांतों पर आधारित होता है, तब वह न केवल छवि निर्माण करता है, बल्कि स्थायी जनसमर्थन भी अर्जित करता है।
प्रश्न 03 :- संपादन कला के स्वरूप पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : संपादन कला का स्वरूप एक व्यापक और सूक्ष्म प्रक्रिया है, जिसमें किसी लेख, समाचार, रिपोर्ट या अन्य रचनात्मक सामग्री को प्रस्तुत करने योग्य बनाने के लिए उसमें सुधार, संशोधन और परिष्करण किया जाता है। यह न केवल भाषा को स्पष्ट और प्रभावशाली बनाता है, बल्कि सामग्री की तार्किकता, संरचना और संप्रेषणीयता को भी मजबूत करता है।
संपादन का आशय:
संपादन का शाब्दिक अर्थ है – ‘संशोधन कर बेहतर बनाना’। पत्रकारिता, लेखन, साहित्य, प्रकाशन, फिल्म और टेलीविजन जैसी विधाओं में संपादन का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। संपादन केवल शब्दों की काट-छाँट नहीं है, बल्कि यह एक रचनात्मक कला है जो संप्रेषण को स्पष्ट, सटीक और रोचक बनाती है।
संपादन कला के प्रमुख स्वरूप:
1. भाषायी शुद्धता:
संपादन के दौरान भाषा की व्याकरणिक शुद्धता, वर्तनी, विराम चिन्हों का सही प्रयोग और शैली पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
2. तथ्यों की जांच:
किसी समाचार या लेख में दिए गए तथ्यों की प्रामाणिकता और सटीकता की पुष्टि करना संपादन का मूल उद्देश्य होता है।
3. संरचना में सुधार:
लेख की संरचना को इस प्रकार ढाला जाता है कि उसकी प्रस्तुति तार्किक और पाठकों के लिए सुगम हो।
4. भाषा की सरलता और प्रभाव:
जटिल शब्दों को सरल बनाना, अनावश्यक विवरण हटाना और प्रभावशाली शैली में प्रस्तुत करना संपादन का कार्य है।
5. शीर्षक और उपशीर्षक निर्धारण:
आकर्षक, संक्षिप्त और उपयुक्त शीर्षकों का चयन भी संपादन प्रक्रिया का भाग होता है, जो पाठकों का ध्यान खींच सके।
6. दृश्य माध्यमों में संपादन:
फिल्मों, वीडियो और टेलीविजन में संपादन के अंतर्गत दृश्य चयन, क्रम निर्धारण, ध्वनि मिलान, संगीत संयोजन आदि आते हैं। यह कला एक दृश्य कथा को सजीव रूप देती है।
संपादन कला का महत्व:
यह लेख या प्रस्तुति की गुणवत्ता में सुधार करता है।
सामग्री को पाठकों या दर्शकों के लिए अधिक बोधगम्य और रोचक बनाता है।
यह त्रुटियों को हटाकर संप्रेषण की सटीकता सुनिश्चित करता है।
संपादन की गुणवत्ता, मीडिया संस्था की विश्वसनीयता और प्रभाव को बढ़ाती है।
निष्कर्ष:-
संपादन एक रचनात्मक, बौद्धिक और कलात्मक प्रक्रिया है, जो किसी भी लेख, समाचार, फिल्म या दृश्य प्रस्तुति की आत्मा को निखारने का कार्य करती है। एक कुशल संपादक लेखक की अभिव्यक्ति को इस प्रकार तराशता है कि वह समाज के सामने प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत हो सके। इस प्रकार संपादन कला निरंतर अभ्यास, भाषा ज्ञान, सूक्ष्म दृष्टि और रचनात्मक सोच का समन्वय है।
प्रश्न 04 :- समाचार से क्या आशय है? समाचारों को कितने रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है?
उत्तर : समाचार का आशय:
समाचार का तात्पर्य नवीन, तात्कालिक और तथ्यपरक जानकारी से होता है, जो समाज में घटित घटनाओं के विषय में लोगों को सूचित करने का कार्य करता है। यह वह सूचना होती है जो जनहित में हो और जिसे जानने की लोगों को आवश्यकता तथा रुचि दोनों हो।
समाचार का कार्य केवल सूचना देना ही नहीं होता, बल्कि वह समाज को जागरूक बनाता है, जनमत निर्माण करता है और लोकतंत्र को सशक्त बनाता है। समाचार की सच्चाई, निष्पक्षता और स्पष्टता उसकी गुणवत्ता के आधार माने जाते हैं।
समाचारों के रूप / वर्गीकरण:
समाचारों को उनके विषय, प्रस्तुति, प्रसारण माध्यम और प्रभाव के आधार पर कई रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
1. विषय के आधार पर –
समाचार को राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, अपराध, पर्यावरण आदि विषयों पर आधारित रूपों में बांटा जा सकता है। प्रत्येक समाचार का विषय उसकी प्रकृति और उद्देश्य को दर्शाता है।
2. प्रस्तुति के आधार पर –
समाचारों को सीधे समाचार (Hard News) और फीचर या हल्के समाचार (Soft News) में बाँटा जाता है। सीधे समाचार तात्कालिक, गंभीर और तथ्यप्रधान होते हैं जैसे – दुर्घटना, चुनाव परिणाम आदि। जबकि फीचर समाचार प्रेरणादायक, मनोरंजक और भावनात्मक होते हैं जैसे – किसी की सफलता की कहानी।
3. प्रसारण माध्यम के आधार पर –
समाचारों को उनके प्रकाशन या प्रसारण के आधार पर प्रिंट मीडिया (अख़बार, पत्रिकाएँ), इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (रेडियो, टेलीविज़न), और डिजिटल मीडिया (मोबाइल, वेबसाइट, सोशल मीडिया) के रूप में देखा जाता है।
4. भौगोलिक प्रभाव के आधार पर –
समाचारों को स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। स्थानीय समाचार किसी क्षेत्र विशेष से संबंधित होते हैं, राष्ट्रीय समाचार पूरे देश से, जबकि अंतर्राष्ट्रीय समाचार विभिन्न देशों से जुड़े होते हैं।
निष्कर्ष:
समाचार केवल सूचना नहीं, बल्कि समाज का दर्पण होता है जो लोगों को सत्य से अवगत कराता है। समाचारों के विभिन्न रूपों का वर्गीकरण न केवल उन्हें समझने में सहायक होता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि सूचना सभी स्तरों और माध्यमों के अनुरूप समाज तक पहुँचे।
प्रश्न 05 :- ई-पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं? विस्तार से समझाइए तथा पत्रकारिता एवं इंटरनेट पत्रकारिता के अंतर्संबंधों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: ई-पत्रकारिता पत्रकारिता का वह आधुनिक स्वरूप है जो इंटरनेट आधारित माध्यमों के ज़रिए समाचारों, विचारों, लेखों तथा अन्य जानकारियों का संप्रेषण करता है। इसे ऑनलाइन पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता या डिजिटल पत्रकारिता भी कहा जाता है। इसमें समाचारों का संकलन, सम्पादन, प्रकाशन और प्रसार डिजिटल प्लेटफॉर्मों के माध्यम से किया जाता है। वेबसाइट, ब्लॉग, यूट्यूब चैनल, सोशल मीडिया ऐप जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम आदि इसके प्रमुख माध्यम हैं।
ई-पत्रकारिता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह पारंपरिक माध्यमों के मुकाबले तेज, सुलभ और प्रतिक्रियाशील है। इसमें खबरें तुरंत अपडेट की जा सकती हैं और पाठक अपनी प्रतिक्रिया तत्काल दे सकते हैं। यह संवाद की दो-तरफ़ा प्रकृति को बढ़ावा देता है।
ई-पत्रकारिता में सामग्री केवल पाठ्य रूप में नहीं बल्कि ऑडियो, वीडियो, ग्राफिक्स, लाइव रिपोर्टिंग, पॉडकास्ट और इन्फोग्राफिक्स के माध्यम से भी प्रस्तुत की जाती है जिससे सूचना अधिक प्रभावी और रोचक बनती है।
पारंपरिक पत्रकारिता और इंटरनेट पत्रकारिता के बीच गहरा संबंध है। दोनों का मूल उद्देश्य सूचना का संप्रेषण है, परंतु उनका कार्य करने का तरीका भिन्न है। पारंपरिक पत्रकारिता में अख़बार, रेडियो और टेलीविजन जैसे माध्यमों का प्रयोग होता है, वहीं ई-पत्रकारिता इंटरनेट पर आधारित होती है।
पारंपरिक पत्रकारिता सीमित समय और स्थान में बंधी होती है, जैसे अख़बार केवल सुबह छपते हैं और टीवी समाचार समयबद्ध होते हैं। इसके विपरीत ई-पत्रकारिता चौबीसों घंटे सक्रिय रहती है और किसी भी समय समाचार प्रकाशित या अपडेट किए जा सकते हैं।
एक और महत्वपूर्ण अंतर यह है कि पारंपरिक पत्रकारिता में पाठक प्रतिक्रिया सीमित होती है जबकि इंटरनेट पत्रकारिता में पाठक कमेंट, शेयर, लाइक आदि के माध्यम से तुरंत संवाद स्थापित कर सकते हैं।
हालाँकि ई-पत्रकारिता के अनेक लाभ हैं, लेकिन इसके साथ कई चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं। जैसे अपुष्ट खबरों का तेजी से प्रसार, फेक न्यूज की अधिकता, तथ्यहीन या सनसनीखेज सामग्री की भरमार, और पत्रकारिता की नैतिकता से समझौता आदि।
फिर भी, यह कहना गलत नहीं होगा कि ई-पत्रकारिता ने पत्रकारिता को और अधिक जनसुलभ, पारदर्शी, संवादात्मक और लोकतांत्रिक बना दिया है। यह पत्रकारिता का भविष्य है, जिसे तकनीक के साथ संतुलन बनाकर आगे ले जाना आवश्यक है।
प्रश्न 06 :- दृश्य-श्रव्य माध्यमों के समाचार लेखन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। यह समाचार पत्र के समाचार लेखन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर: दृश्य-श्रव्य माध्यम जैसे कि टेलीविजन, रेडियो, ऑनलाइन न्यूज़ चैनल (जैसे यूट्यूब, सोशल मीडिया लाइव आदि) आधुनिक पत्रकारिता के प्रभावशाली माध्यम हैं। इन माध्यमों में समाचार लेखन की शैली पारंपरिक समाचार पत्रों से भिन्न होती है। यहाँ समाचारों को प्रस्तुत करते समय केवल शब्दों पर ही नहीं, बल्कि ध्वनि, दृश्य और प्रस्तुति के अंदाज़ पर भी ध्यान दिया जाता है।
दृश्य-श्रव्य समाचार लेखन की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
संक्षिप्तता और स्पष्टता: दृश्य-श्रव्य माध्यमों में समाचारों को सीमित समय में प्रस्तुत करना होता है, इसलिए समाचार छोटे, स्पष्ट और मुख्य बिंदुओं पर आधारित होते हैं।
सरल और संवादात्मक भाषा: यहाँ बोली जाने वाली भाषा प्रयोग होती है, जो आम दर्शकों की समझ में तुरंत आ सके। कठिन और जटिल वाक्यांशों से परहेज़ किया जाता है।
श्रव्य और दृश्य प्रभाव का प्रयोग: समाचार को प्रभावशाली बनाने के लिए चित्र, वीडियो क्लिप, ध्वनि प्रभाव (sound effects), ग्राफिक्स और एनिमेशन का प्रयोग किया जाता है।
तात्कालिकता: दृश्य-श्रव्य माध्यमों में ताजगी और तुरंत रिपोर्टिंग महत्वपूर्ण होती है। ब्रेकिंग न्यूज़ या लाइव कवरेज इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।
प्रस्तुति शैली का महत्व: समाचार वाचक की आवाज़, उच्चारण, भाव-भंगिमा और कैमरे के सामने आत्मविश्वासपूर्ण प्रस्तुति भी समाचार के प्रभाव को बढ़ाती है।
समाचार पत्रों के समाचार लेखन से भिन्नता:
समाचार पत्रों में लेखन विस्तृत और विश्लेषणात्मक होता है, जबकि दृश्य-श्रव्य माध्यमों में संक्षिप्त और प्रभावशाली होता है।
समाचार पत्रों में केवल पाठ होता है, जबकि दृश्य-श्रव्य माध्यमों में ध्वनि, चित्र और वीडियो सभी का मिश्रण होता है।
पाठक समाचार पत्र अपने अनुसार पढ़ता है, जबकि दृश्य-श्रव्य समाचार पूर्व निर्धारित समय पर देखे-सुने जाते हैं।
दृश्य-श्रव्य समाचार तुरंत प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकते हैं, जबकि समाचार पत्रों में यह प्रक्रिया धीमी होती है।
दृश्य-श्रव्य माध्यमों में भाषा अधिक सरल और बोलचाल की होती है, जबकि समाचार पत्रों की भाषा अपेक्षाकृत औपचारिक और लिखित शैली की होती है।
निष्कर्ष:, दोनों माध्यमों का उद्देश्य सूचना देना है, परंतु उनके समाचार लेखन और प्रस्तुति की शैली में अंतर होता है। दृश्य-श्रव्य समाचार लेखन आज की त्वरित और तकनीकी दुनिया में अधिक प्रभावी सिद्ध हो रहा है, किन्तु समाचार पत्रों की गंभीरता और विश्लेषणात्मक शैली का भी अपना महत्व बना हुआ है।
प्रश्न 07 :- समाचारों का वर्गीकरण बताए
उत्तर :- समाचारों का वर्गीकरण (Classification of News) विभिन्न आधारों पर किया जा सकता है। समाचार एक सामाजिक आवश्यकता है, और इसकी प्रकृति, स्रोत, विषय और प्रस्तुति के अनुसार इसे कई प्रकारों में बाँटा जाता है। नीचे समाचारों के प्रमुख वर्गीकरण प्रस्तुत हैं:
1. विषय के आधार पर समाचारों का वर्गीकरण
1. राजनीतिक समाचार – सरकार, चुनाव, संसद, राजनीतिक दलों से संबंधित समाचार।
उदाहरण: प्रधानमंत्री का विदेश दौरा।
2. आर्थिक समाचार – बजट, शेयर बाजार, व्यापार, उद्योग, महंगाई आदि से जुड़ी खबरें।
उदाहरण: रिज़र्व बैंक की नई मौद्रिक नीति।
3. सामाजिक समाचार – समाज में घटित घटनाएँ जैसे अपराध, विवाह, उत्सव, आत्महत्याएँ आदि।
उदाहरण: किसी जिले में बाल विवाह की घटना।
4. अंतरराष्ट्रीय समाचार – विदेशों में घटित महत्वपूर्ण घटनाएँ।
उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की रिपोर्ट।
5. खेल समाचार – विभिन्न खेलों से संबंधित ताज़ा जानकारी।
उदाहरण: भारत ने क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता।
6. सांस्कृतिक समाचार – नाटक, फिल्म, साहित्य, कला आदि से संबंधित खबरें।
उदाहरण: किसी फ़िल्म समारोह की रिपोर्ट।
7. शैक्षिक समाचार – परीक्षाओं, विश्वविद्यालयों, शिक्षा नीति से संबंधित जानकारी।
उदाहरण: CBSE द्वारा परीक्षा तिथि घोषित।
2. स्रोत के आधार पर समाचारों का वर्गीकरण
1. प्रत्यक्ष समाचार – प्रत्यक्ष रूप से घटनास्थल पर जाकर एकत्र किए गए समाचार।
2. एजेंसी समाचार – समाचार एजेंसियों (जैसे: पीटीआई, यूएनआई, रॉयटर्स) द्वारा प्रदान की गई खबरें।
3. संवाददाता द्वारा भेजे गए समाचार – रिपोर्टर या संवाददाता द्वारा स्थानीय क्षेत्र से भेजे गए समाचार।
4. वर्गीकृत विज्ञापन समाचार – पाठकों द्वारा दिए गए विज्ञापन जो समाचार जैसे प्रतीत होते हैं।
3. प्रस्तुति के आधार पर समाचारों का वर्गीकरण
1. सीधी खबरें (Straight News) – बिना किसी राय के संक्षिप्त और तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत खबरें।
2. विश्लेषणात्मक खबरें – जिनमें घटना के पीछे के कारणों और प्रभावों का विश्लेषण होता है।
3. फीचर आधारित खबरें – सामान्य समाचारों की तुलना में विस्तृत, भावनात्मक और रोचक ढंग से लिखी जाती हैं।
4. संवाद या साक्षात्कार आधारित खबरें – किसी व्यक्ति के विचारों और वक्तव्यों पर आधारित।
4. प्राथमिकता के आधार पर समाचारों का वर्गीकरण
1. मुख्य समाचार (Main News) – सबसे महत्वपूर्ण और पहले पन्ने की खबरें।
2. सामान्य समाचार (General News) – दैनिक घटनाओं से संबंधित सामान्य जानकारी।
3. तात्कालिक समाचार (Breaking News) – अचानक घटी घटनाएँ जिनका तत्काल महत्व होता है।
4. अनुवर्ती समाचार (Follow-up News) – किसी पहले प्रकाशित खबर से संबंधित नई जानकारी।
निष्कर्ष
समाचारों का वर्गीकरण पत्रकारिता में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे न केवल पाठकों को उनकी रुचि के अनुसार समाचार प्राप्त होते हैं, बल्कि संपादकों को भी समाचारों की योजना बनाने और प्रस्तुत करने में सुविधा होती है। सही वर्गीकरण से समाचार की महत्ता और पठनीयता दोनों बढ़ जाती हैं।
प्रश्न 08 :- समाचार पत्र लेखन : स्वरूप और प्रक्रिया बताइए।
उत्तर :- समाचार-पत्र लेखन पत्रकारिता की एक मूलभूत विधा है, जिसके माध्यम से समाचारों को सही, सटीक, स्पष्ट और रोचक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें तथ्यों की प्रस्तुति, भाषा की सादगी, निष्पक्षता और स्पष्टता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। समाचार लेखन में एक निश्चित स्वरूप और प्रक्रिया (Format and Process) का पालन किया जाता है ताकि पाठकों को संपूर्ण जानकारी प्रभावी ढंग से प्राप्त हो सके।
1. समाचार लेखन का स्वरूप (Form of News Writing):
समाचार लेखन में एक निर्धारित ढांचा होता है, जिसे आमतौर पर उल्टा पिरामिड संरचना (Inverted Pyramid Structure) कहा जाता है। इसके अंतर्गत सबसे पहले महत्वपूर्ण तथ्य दिए जाते हैं और बाद में विस्तार से विवरण।
मुख्य घटक इस प्रकार हैं:
1. शीर्षक (Headline):
संक्षिप्त, आकर्षक और समाचार का सार प्रस्तुत करने वाला।
उदाहरण: "भूकंप के झटकों से कांपी दिल्ली"
2. उपशीर्षक (Subheadline):
शीर्षक को विस्तार देता है या प्रमुख तथ्य को रेखांकित करता है।
उदाहरण: रिक्टर स्केल पर 6.2 तीव्रता, कोई जान-माल का नुकसान नहीं
3. लीड (Lead):
समाचार की पहली पंक्ति या पैरा जो 5W1H (What, When, Where, Who, Why, How) का उत्तर देता है।
उदाहरण: सोमवार को दोपहर 2:15 बजे दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के झटके महसूस किए गए।
4. मुख्य शरीर (Body):
विस्तार से घटना का विवरण, पृष्ठभूमि, प्रतिक्रियाएं आदि।
ताज़ा जानकारी, प्रत्यक्षदर्शियों के बयान, विशेषज्ञों की राय आदि।
5. समापन (Conclusion):
भविष्य की स्थिति, सुधार के उपाय, प्रशासन की तैयारी आदि का उल्लेख।
2. समाचार लेखन की प्रक्रिया (Process of News Writing):
समाचार लिखने की एक सुनिश्चित प्रक्रिया होती है जिसे निम्न चरणों में बाँटा जा सकता है:
1. समाचार संकलन (News Gathering):
प्रत्यक्ष रिपोर्टिंग, प्रेस रिलीज़, संवाददाता, समाचार एजेंसियों या सूचना स्रोतों से जानकारी प्राप्त करना।
2. तथ्यों की जांच (Verification of Facts):
प्राप्त सूचनाओं की सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना।
3. समाचार का चयन (News Selection):
समाचार-मूल्य (News Value) जैसे नवीनता, महत्त्व, निकटता, रुचिकरता आदि के आधार पर समाचार का चयन।
4. रूपरेखा बनाना (Outlining):
समाचार के लिए अनुक्रम तय करना — सबसे महत्वपूर्ण तथ्य पहले, कम महत्वपूर्ण बाद में।
5. लेखन (Writing):
स्पष्ट, सरल और तथ्यात्मक भाषा का प्रयोग।
निष्पक्षता, संतुलन और पठनीयता का ध्यान रखना।
6. संपादन (Editing):
भाषा, व्याकरण, शैली और अनावश्यक विवरणों को सुधारना।
शीर्षक और लीड की पुनः समीक्षा करना।
7. प्रकाशन (Publication):
समाचार को समाचार पत्र, वेबसाइट, मोबाइल ऐप या अन्य माध्यम से प्रकाशित करना।
निष्कर्ष:
समाचार लेखन एक सृजनात्मक तथा ज़िम्मेदारीपूर्ण कार्य है जिसमें तथ्यों की सटीक प्रस्तुति, भाषा की स्पष्टता, और समाज के प्रति उत्तरदायित्व निहित होता है। समाचार का सही स्वरूप और प्रक्रिया उसके प्रभाव को कई गुना बढ़ा देता है। एक कुशल पत्रकार वही है जो इन नियमों का पालन करते हुए सशक्त समाचार तैयार कर सके।
प्रश्न 09: रेडियो लेखन के सिद्धांत को विवेचित कीजिए।
उत्तर: रेडियो लेखन एक विशिष्ट विधा है जिसमें लेखन को इस प्रकार ढाला जाता है कि वह केवल श्रवण माध्यम के लिए उपयुक्त हो। चूँकि रेडियो एक 'श्रव्य माध्यम' है, इसलिए इसमें दृश्य संकेतों की बजाय ध्वनि, संवाद और भाषा के माध्यम से श्रोताओं से संवाद स्थापित किया जाता है। रेडियो लेखन के कुछ निश्चित सिद्धांत (Principles) होते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है, ताकि संदेश प्रभावशाली, स्पष्ट और संप्रेषणीय हो।
रेडियो लेखन के प्रमुख सिद्धांत:
1. श्रवण उपयुक्तता (Aural Suitability):
रेडियो पर जो कुछ भी प्रसारित होता है, वह केवल सुना जाता है। इसलिए रेडियो लेखन ऐसा होना चाहिए जो सुनने में सहज, स्पष्ट और रोचक लगे।
2. सरलता और स्पष्टता (Simplicity and Clarity):
भाषा सरल और बोलचाल की होनी चाहिए। कठिन शब्दों, जटिल वाक्य रचनाओं और तकनीकी शब्दों से परहेज किया जाता है। उद्देश्य यह होता है कि श्रोता पहली बार सुनते ही बात समझ जाए।
3. संक्षिप्तता (Brevity):
रेडियो में समय सीमित होता है। इसलिए अनावश्यक विवरणों की बजाय बिंदुवार और सारगर्भित जानकारी दी जाती है।
4. लयात्मकता और प्रवाह (Rhythm and Flow):
रेडियो लेखन में वाक्यों का प्रवाह और ध्वनि संतुलन जरूरी होता है ताकि कार्यक्रम सुनने में आकर्षक और सजीव लगे।
5. संवाद शैली (Conversational Style):
रेडियो की भाषा आम आदमी की भाषा होती है। संवादात्मक शैली श्रोताओं को अधिक जोड़े रखती है। इसलिए स्क्रिप्ट में "आप", "हम", "देखिए", "सुनिए" जैसे शब्दों का प्रयोग होता है।
6. ध्वनि प्रभावों का उपयोग (Use of Sound Effects):
दृश्य की अनुपस्थिति में ध्वनि प्रभावों (Sound Effects) के माध्यम से वातावरण निर्मित किया जाता है। इससे कल्पना शक्ति जागृत होती है।
7. श्रोता को ध्यान में रखकर लेखन (Audience-Centric Writing):
स्क्रिप्ट तैयार करते समय श्रोताओं की आयु, शिक्षा, भाषा, संस्कृति और क्षेत्र को ध्यान में रखा जाता है।
8. दोहराव की आवश्यकता (Need of Repetition):
रेडियो में एक बार सुनी गई बात वापस नहीं देखी जा सकती, इसलिए मुख्य बातें कभी-कभी दोहराई जाती हैं ताकि वे श्रोता के मन में बैठ जाएँ।
9. सजीवता और कल्पनाशीलता (Vividness and Imagination):
रेडियो स्क्रिप्ट इस प्रकार होनी चाहिए कि श्रोता उसे सुनकर दृश्य की कल्पना कर सके। इसके लिए भाषा को चित्रात्मक बनाया जाता है।
निष्कर्ष:
रेडियो लेखन के सिद्धांत इस माध्यम की प्रकृति पर आधारित हैं। चूंकि रेडियो केवल सुनने का माध्यम है, अतः इसमें भाषा, ध्वनि और लय का कुशल प्रयोग आवश्यक होता है। सरलता, संक्षिप्तता, संवादात्मकता और श्रोता-केंद्रितता इसके मूल स्तंभ हैं। इन सिद्धांतों के आधार पर तैयार किया गया स्क्रिप्ट ही रेडियो पर प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है।
प्रश्न 10: टेलीविजन लेखन के सिद्धांत बताइए
उत्तर: टेलीविजन लेखन, दृश्य-श्रव्य माध्यम के लिए किया जाने वाला एक विशेष प्रकार का लेखन है, जिसमें दृश्य प्रभावों, संवादों और ध्वनि का समुचित उपयोग करते हुए सामग्री प्रस्तुत की जाती है। यह लेखन शैली अन्य पारंपरिक लेखन से भिन्न होती है क्योंकि इसमें दृश्यता और समय-सीमा का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। टेलीविजन लेखन के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
1. दृश्यता का सिद्धांत (Principle of Visualisation):
टेलीविजन एक दृश्य माध्यम है, इसलिए लेखक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो कुछ भी लिखा जा रहा है, वह दृश्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। केवल शब्दों से नहीं, बल्कि चित्रों और दृश्यों से भी कहानी कहनी होती है।
2. संक्षिप्तता (Brevity):
टेलीविजन लेखन में समय सीमित होता है, इसलिए संवाद छोटे, सटीक और प्रभावशाली होने चाहिए। दर्शक लंबे संवादों से ऊब सकते हैं, अतः संक्षिप्त लेखन अधिक प्रभावशाली होता है।
3. सरल और स्पष्ट भाषा (Simple and Clear Language):
दर्शकों की विविधता को देखते हुए, भाषा सरल और सीधे समझ आने योग्य होनी चाहिए। जटिल शब्दों या कठिन वाक्य रचना से परहेज करना चाहिए।
4. दृश्य और ध्वनि का तालमेल (Synchronization of Visuals and Sound):
लेखन ऐसा होना चाहिए कि दृश्य, ध्वनि, संगीत और संवाद आपस में समन्वित हों। इससे कार्यक्रम की रोचकता और प्रभावशीलता बढ़ती है।
5. दर्शक केंद्रित लेखन (Audience-Oriented Writing):
लेखन करते समय यह समझना जरूरी है कि कार्यक्रम किस आयु वर्ग, रुचि या सामाजिक पृष्ठभूमि के दर्शकों के लिए है। उसी अनुरूप विषय-वस्तु, भाषा और प्रस्तुति शैली होनी चाहिए।
6. कथानक में गति (Pace in Narrative):
टेलीविजन कार्यक्रम में कथानक की गति धीमी नहीं होनी चाहिए। घटनाएं, दृश्य और संवाद समयबद्ध तरीके से आगे बढ़ने चाहिए ताकि दर्शकों की रुचि बनी रहे।
7. पटकथा संरचना (Script Structure):
एक सशक्त टेलीविजन लेखन के लिए पटकथा का प्रारूप सही होना जरूरी है। इसमें प्रस्तावना, मुख्य कथा, और समापन के साथ एक स्पष्ट ढांचा होना चाहिए।
8. तकनीकी समझ (Technical Awareness):
लेखक को कैमरा कोण, संपादन, लाइटिंग, बैकग्राउंड स्कोर आदि तकनीकी पहलुओं की बुनियादी जानकारी होनी चाहिए ताकि वह स्क्रिप्ट उसी अनुरूप तैयार कर सके।
9. भावनात्मक अपील (Emotional Appeal):
टेलीविजन कार्यक्रमों में भावनाओं की प्रस्तुति अत्यंत आवश्यक होती है। कहानी में भावनात्मक गहराई होनी चाहिए जिससे दर्शक उससे जुड़ सकें।
10. अद्यतनता और यथार्थता (Topicality and Realism):
टेलीविजन के लिए सामग्री यथार्थपरक और वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक परिस्थितियों के अनुरूप होनी चाहिए।
निष्कर्ष:
टेलीविजन लेखन एक रचनात्मक और तकनीकी प्रक्रिया है जिसमें दृश्यात्मकता, संक्षिप्तता, भावनात्मकता और तकनीकी समन्वय का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसके सिद्धांतों का पालन करके ही एक प्रभावी, दर्शक-प्रिय और गुणवत्तापूर्ण कार्यक्रम प्रस्तुत किया जा सकता है।
प्रश्न 11: हिंदी विज्ञान पत्रकारिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: विज्ञान पत्रकारिता वह विधा है, जिसके माध्यम से वैज्ञानिक जानकारियों, खोजों, तकनीकी विकासों और अनुसंधानों को आम जनमानस तक पहुँचाया जाता है। जब यह कार्य हिंदी भाषा में किया जाता है, तो उसे हिंदी विज्ञान पत्रकारिता कहा जाता है। इसका उद्देश्य जटिल वैज्ञानिक विषयों को सरल, स्पष्ट और बोधगम्य भाषा में लोगों तक पहुँचाना होता है।
हिंदी विज्ञान पत्रकारिता वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह लोगों में अंधविश्वास, रूढ़ियों और मिथकों को दूर करने का कार्य करती है और उनमें तार्किक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करती है। यह पत्रकारिता न केवल विज्ञान को लोकप्रिय बनाती है, बल्कि सामाजिक समस्याओं से जुड़े वैज्ञानिक समाधान भी प्रस्तुत करती है, जैसे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ ऊर्जा, महामारी, टीकाकरण आदि।
हिंदी विज्ञान पत्रकारिता के अंतर्गत लेख, फीचर, रिपोर्ट, साक्षात्कार, रेडियो व टीवी कार्यक्रम तथा ऑनलाइन माध्यमों के जरिए विज्ञान से संबंधित विषयों को प्रस्तुत किया जाता है। इस क्षेत्र में विज्ञान प्रगति, विज्ञान चेतना, साइंस रिपोर्टर, दूरदर्शन का 'विज्ञान दर्शन' आदि उल्लेखनीय प्रयास हैं। इसके अलावा, इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से भी हिंदी में विज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत करने वाले कई ब्लॉग और यूट्यूब चैनल सक्रिय हैं।
हालांकि, हिंदी विज्ञान पत्रकारिता को अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सबसे बड़ी चुनौती है – विज्ञान की अच्छी समझ रखने वाले पत्रकारों की कमी। इसके अलावा तकनीकी शब्दों का हिंदी अनुवाद कठिन होता है और पाठकों की रुचि भी कम देखने को मिलती है। मीडिया संस्थान विज्ञान से जुड़ी खबरों को प्रायः कम प्राथमिकता देते हैं।
इन सबके बावजूद हिंदी विज्ञान पत्रकारिता की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह न केवल शिक्षा और ज्ञान का प्रचार करती है, बल्कि वैज्ञानिक सोच के प्रचार-प्रसार का भी माध्यम बनती है। समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास और तकनीकी प्रगति के प्रति जागरूकता लाने के लिए हिंदी विज्ञान पत्रकारिता को प्रोत्साहन देना आवश्यक है। यह भविष्य की एक सशक्त पत्रकारिता विधा के रूप में उभर रही है।
प्रश्न 12: साइबर मीडिया क्या है? साइबर मीडिया और अन्य मीडिया में अंतर बताइए।
उत्तर: साइबर मीडिया का अर्थ है — डिजिटल और इंटरनेट आधारित वह संचार माध्यम जो सूचना, समाचार, मनोरंजन और संवाद को ऑनलाइन माध्यम से जनसामान्य तक पहुँचाता है। इसे हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का आधुनिक रूप भी कह सकते हैं, जिसमें वेबसाइट, ब्लॉग, यूट्यूब चैनल, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम), पॉडकास्ट, ई-पेपर आदि शामिल हैं। यह मीडिया 24 घंटे चलने वाला, इंटरऐक्टिव और वैश्विक स्तर पर पहुँच रखने वाला माध्यम है।
साइबर मीडिया का उद्भव सूचना क्रांति और इंटरनेट के विस्तार के साथ हुआ। आज यह पत्रकारिता, जनसंचार, व्यापार, शिक्षा और समाज के हर क्षेत्र में गहरी पैठ बना चुका है।
साइबर मीडिया और अन्य मीडिया में अंतर:
1. प्रौद्योगिकी आधारित माध्यम:
पारंपरिक मीडिया (जैसे अखबार, रेडियो, टीवी) मुख्यतः एकतरफा संप्रेषण माध्यम होते हैं, जबकि साइबर मीडिया दो-तरफा संवाद को बढ़ावा देता है। इसमें यूज़र भी अपनी बात रख सकता है, कमेंट कर सकता है या सामग्री को साझा कर सकता है।
2. गतिशीलता और त्वरितता:
साइबर मीडिया में समाचार और जानकारी तुरंत प्रकाशित की जा सकती है और तुरंत अपडेट भी की जा सकती है, जबकि प्रिंट मीडिया या टेलीविजन में समाचारों के प्रकाशन/प्रसारण के लिए समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
3. सामग्री का स्वरूप:
पारंपरिक मीडिया में अलग-अलग प्लेटफॉर्म होते हैं — जैसे अखबार में पाठ्य सामग्री, टीवी में दृश्य और रेडियो में श्रव्य। जबकि साइबर मीडिया एक साथ पाठ्य, दृश्य और श्रव्य सामग्री प्रस्तुत कर सकता है।
4. लोकतांत्रिक स्वरूप:
साइबर मीडिया हर किसी को अपनी बात कहने और दूसरों से संवाद करने का अवसर देता है। यह पारंपरिक मीडिया की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक है, क्योंकि यहाँ संपादकीय नियंत्रण सीमित होता है।
5. व्यापक पहुँच और वैश्विकता:
साइबर मीडिया की पहुँच सीमित क्षेत्र में नहीं होती, बल्कि यह इंटरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया तक पहुँच सकता है। पारंपरिक मीडिया अधिकतर स्थानीय या राष्ट्रीय सीमाओं तक ही सीमित रहता है।
6. लागत और सुलभता:
इंटरनेट कनेक्शन और एक स्मार्टफोन के माध्यम से कोई भी व्यक्ति साइबर मीडिया का हिस्सा बन सकता है, जबकि पारंपरिक मीडिया में अधिक संसाधनों, तकनीकी स्टाफ और पूंजी की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष:, साइबर मीडिया ने पारंपरिक मीडिया के ढांचे को पूरी तरह बदल दिया है। यह तेज, संवादात्मक, बहुआयामी और व्यक्ति-केन्द्रित माध्यम है, जो भविष्य की पत्रकारिता और जनसंचार का प्रमुख रूप बनता जा रहा है।
प्रश्न 13: धार्मिक मामलों की कवरेज क्यों जरूरी है? स्पष्ट करें।
उत्तर: धार्मिक मामलों की कवरेज पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण पक्ष है क्योंकि धर्म समाज के व्यापक वर्ग को प्रभावित करता है। धर्म केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक ढांचे से भी गहराई से जुड़ा होता है। धार्मिक विषयों की कवरेज के अनेक कारण और उद्देश्य होते हैं:
1. समाज की धार्मिक विविधता को प्रतिबिंबित करना:
भारत जैसे बहुधार्मिक देश में हर धर्म, संप्रदाय और पंथ की जानकारी देना आवश्यक है ताकि समाज में एक-दूसरे के प्रति समझ और सम्मान बढ़े।
2. धार्मिक आयोजनों और पर्वों की जानकारी देना:
मीडिया के माध्यम से लोगों को विभिन्न धार्मिक पर्वों, त्योहारों और रीतियों के बारे में जानकारी दी जाती है। यह न केवल जानकारी देता है, बल्कि सांस्कृतिक एकता को भी बढ़ाता है।
3. धार्मिक तनाव या विवाद की पारदर्शी रिपोर्टिंग:
जब किसी धार्मिक मुद्दे पर विवाद या तनाव उत्पन्न होता है, तब मीडिया की जिम्मेदारी होती है कि वह निष्पक्ष और तथ्यात्मक रिपोर्टिंग करे, जिससे अफवाहें न फैलें और समाज में शांति बनी रहे।
4. धार्मिक नेताओं और संस्थाओं की गतिविधियों की जानकारी देना:
धार्मिक नेता समाज में प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं। उनकी गतिविधियों, बयानों और सामाजिक कार्यों की जानकारी मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुँचती है।
5. धर्म के सामाजिक सरोकारों की समीक्षा करना:
धर्म का संबंध केवल पूजा-पाठ से नहीं, बल्कि समाजसेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों से भी होता है। मीडिया ऐसे कार्यों की रिपोर्टिंग कर समाज को प्रेरणा देता है।
6. धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास के विरुद्ध जागरूकता:
कुछ धार्मिक गतिविधियाँ कट्टरता या अंधविश्वास को बढ़ावा देती हैं। पत्रकारिता का कर्तव्य है कि वह ऐसे मामलों की पहचान करे और समाज को सचेत करे।
7. संविधानिक और विधिक दृष्टिकोण:
भारत में धर्म की स्वतंत्रता संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार है। मीडिया का कार्य है कि वह धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दों की जानकारी दे और किसी भी पक्ष के साथ भेदभाव न करे।
निष्कर्ष:
धार्मिक मामलों की कवरेज इसलिए जरूरी है क्योंकि यह न केवल सूचना देने का कार्य करती है, बल्कि समाज में संवाद, सहिष्णुता और सामाजिक समरसता को भी बढ़ावा देती है। हालांकि, यह कवरेज अत्यंत संवेदनशील होती है और इसे करते समय पत्रकारों को निष्पक्षता, जिम्मेदारी और तथ्यों के प्रति निष्ठा बनाए रखनी चाहिए।
प्रश्न 14 :- भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता को लेकर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर : भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता (Health Journalism) मीडिया का एक अत्यंत महत्वपूर्ण लेकिन अपेक्षाकृत उपेक्षित क्षेत्र रहा है। यह पत्रकारिता समाज को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी, चेतावनी, जागरूकता और सरकारी योजनाओं की जानकारी देने में मुख्य भूमिका निभाती है। विशेषकर कोविड-19 महामारी के दौरान यह क्षेत्र एक बार फिर केंद्र में आया और इसकी उपयोगिता को सबने स्वीकारा।
स्वास्थ्य पत्रकारिता का उद्देश्य:
स्वास्थ्य संबंधी तथ्यों, नीतियों, बीमारियों और उपचारों की जानकारी देना
आम जनता को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाना
सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं व नीतियों की जानकारी पहुँचाना
मिथकों, अफवाहों और झूठी चिकित्सीय जानकारियों का खंडन करना
चिकित्सकीय लापरवाही या भ्रष्टाचार पर प्रकाश डालना
भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता की स्थिति:
1. सीमित कवरेज:
भारतीय मुख्यधारा मीडिया में स्वास्थ्य समाचारों को अक्सर अन्य विषयों जैसे राजनीति, अपराध या मनोरंजन के मुकाबले कम प्राथमिकता दी जाती है।
2. सूचना की अपूर्णता:
कई बार स्वास्थ्य से जुड़ी रिपोर्टिंग में वैज्ञानिक तथ्यों की पुष्टि नहीं होती, जिससे भ्रम फैलता है।
3. शहरी केंद्रित रिपोर्टिंग:
ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के स्वास्थ्य मुद्दे अधिकांशतः उपेक्षित रहते हैं।
4. संसाधनों की कमी:
स्वास्थ्य पत्रकारों को विषय विशेषज्ञता की कमी, तकनीकी ज्ञान की सीमाएं और संस्थागत सहयोग का अभाव झेलना पड़ता है।
हाल की प्रगति:
कोविड-19 के दौरान स्वास्थ्य पत्रकारिता ने बड़ी भूमिका निभाई संक्रमण की जानकारी, टीकाकरण अभियान और हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर की हालत को सामने लाने में।
डिजिटल और साइबर मीडिया के माध्यम से स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता तेजी से फैली।
कुछ मीडिया संस्थान अब स्वास्थ्य के लिए विशेष पेज, कॉलम और कार्यक्रम भी चला रहे हैं।
चुनौतियाँ:
स्वास्थ्य रिपोर्टिंग में प्रशिक्षण प्राप्त पत्रकारों की कमी
झूठी जानकारी (Fake News) का तेजी से प्रसार
प्रायोजित सामग्री और फार्मा कंपनियों का दबाव
शोध व अनुसंधान आधारित सामग्री का अभाव
निष्कर्ष:
भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता धीरे-धीरे एक गंभीर और स्वतंत्र विधा के रूप में उभर रही है, लेकिन इसे और अधिक वैज्ञानिक, तथ्यात्मक और सर्व-सुलभ बनाने की आवश्यकता है। आज जब भारत जैसे विशाल देश को जनस्वास्थ्य की गंभीर समस्याओं से जूझना पड़ रहा है, तब पत्रकारिता का यह क्षेत्र समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाता है। इसके विकास के लिए संस्थागत समर्थन, पत्रकारों का प्रशिक्षण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण आवश्यक है।
प्रश्न 15: क्या ग्रामीण पत्रकारिता की शुरुआत कृषि विकास को लेकर हुई थी? विवेचना कीजिए। ग्रामीण विकास में पत्रकारिता की क्या भूमिका है?
उत्तर:- भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां आज भी बड़ी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। ग्रामीण पत्रकारिता का उद्भव और विकास ग्रामीण जनता की समस्याओं, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और बुनियादी सुविधाओं की रिपोर्टिंग से जुड़ा है। इस संदर्भ में यह जानना आवश्यक है कि क्या ग्रामीण पत्रकारिता की शुरुआत कृषि विकास को लेकर हुई थी और ग्रामीण विकास में पत्रकारिता की भूमिका क्या है।
क्या ग्रामीण पत्रकारिता की शुरुआत कृषि विकास को लेकर हुई थी? हां, ग्रामीण पत्रकारिता की शुरुआत मुख्यतः कृषि और किसान हितों की चिंता से हुई थी।
स्वतंत्रता के बाद जब देश में कृषि सुधारों, हरित क्रांति, सहकारिता आंदोलन और पंचायती राज जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत हुई, तब मीडिया का ध्यान भी ग्रामीण क्षेत्र की ओर गया। पत्रकारों ने महसूस किया कि यदि ग्रामीण भारत को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है, तो उसकी समस्याओं और ज़रूरतों को सामने लाना आवश्यक है।
मुख्य बिंदु:
हरित क्रांति के दौर (1960-70) में किसानों को नई तकनीक, उर्वरक, सिंचाई योजनाएं और सरकारी योजनाओं की जानकारी देने के लिए विशेष प्रयास किए गए। आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से ‘किसानवाणी’, ‘कृषि दर्शन’ जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत हुई जो पत्रकारिता के ग्रामीण संस्करण माने जा सकते हैं। यह दौर कृषि जागरूकता और सुधार पर केंद्रित ग्रामीण पत्रकारिता की नींव बना।
ग्रामीण विकास में पत्रकारिता की भूमिका:
ग्रामीण पत्रकारिता केवल समाचारों की रिपोर्टिंग तक सीमित नहीं है, यह एक सामाजिक परिवर्तन का माध्यम भी है। यह ग्रामीण जनता की आवाज़ सरकार और शहरी समाज तक पहुंचाती है, साथ ही उन्हें सूचना, अधिकार और योजनाओं के बारे में जागरूक करती है।
1. सूचना का सेतु:
पत्रकारिता सरकार और ग्रामीण जनता के बीच संवाद का माध्यम बनती है। सरकारी योजनाओं, कृषि तकनीकों, रोजगार अवसरों की जानकारी ग्रामीणों तक पहुंचाती है।
2. जन-जागरूकता फैलाना:
स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, पर्यावरण और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर ग्रामीणों को जागरूक करना पत्रकारिता का प्रमुख कार्य है।
3. नीतियों में बदलाव की प्रेरणा:
ग्रामीण समस्याओं जैसे कि सूखा, बाढ़, भ्रष्टाचार, बिजली-पानी की कमी आदि को उजागर कर पत्रकारिता सरकार को नीति सुधार के लिए प्रेरित करती है।
4. स्थानीय मुद्दों को आवाज़ देना:
राष्ट्रीय मीडिया में जो विषय अक्सर अनदेखे रह जाते हैं, उन्हें ग्रामीण पत्रकारिता उठाकर मंच प्रदान करती है।
5. सकारात्मक कहानियों का प्रचार:
प्रगतिशील किसानों, महिला समूहों, स्वयं सहायता समूहों और पंचायतों के सफल प्रयासों को सामने लाकर अन्य गांवों को प्रेरित किया जाता है।
निष्कर्ष:
ग्रामीण पत्रकारिता की शुरुआत कृषि विकास की आवश्यकता से हुई थी, लेकिन समय के साथ इसका दायरा ग्रामीण जीवन के हर क्षेत्र तक विस्तृत हो गया। आज यह न केवल सूचना का माध्यम है, बल्कि सामाजिक चेतना, जागरूकता और सशक्तिकरण का एक सशक्त उपकरण बन चुकी है। ग्रामीण भारत के समग्र विकास के लिए प्रभावशाली और उत्तरदायी पत्रकारिता अत्यंत आवश्यक है।
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